सुख दूसरे के और दुख अपने

सुख दूसरे के और दुख अपने

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जयन्ती की सास काफी बीमार रहने लगी थी। धीरे धीरे उनका मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया। जयन्ती के बच्चे भी अभी बहुत छोटे थे। पति तरुण की पोस्टिंग दूसरे शहर में होने के कारण जयन्ती के ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ बहुत अधिक था। किंतु अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए जयन्ती बहुत मेहनत, धैर्य और समर्पण से अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रही थी। सास की हालत एसी थी कि न तो वह अपने आप खा पाती थी, न पी पाती थी। नहाने और शौच जैसे काम भी जयन्ती को ऎसे करने पड़ते थे जैसे कोई छोटा बच्चा हो।

दिन में कितनी ही बार सास के कपड़े मल-मूत्र से गन्दे हो जाते थे। किंतु वह उफ तक न करती। उसके समर्पण की वजह से ही तरुण उसका बहुत अधिक सम्मान करते।

जयन्ती का काम इतना अधिक बढ़ गया था कि उसे अपने लिए तनिक भी समय नहीं मिलता था। इस पर भी रिश्तेदार अक्सर ही कुछ न कुछ सुना ही देते। जयन्ती का मन बहुत दुखी हो जाता किंतु वह नजरअंदाज करके अपने काम में फिर लग जाती।

जयन्ती किसी को अपनी परेशानी के बारे में ज्यादा नहीं बताती। सभी को लगता कि जयन्ती को तो कोई समस्या ही नहीं है। और पति पत्नी के आपसी प्रेम और मधुर संबंधों को देखकर मन ही मन कुछ लोग उससे ईर्ष्या भी करते।

आज जयन्ती की भाभी का फोन आया। हालचाल जानने के बाद बताने लगी कि दादी सास की तबीयत खराब है। पेट खराब होने की वजह से सारे बरामदे में गंदगी हो गई। बहुत ही मुश्किल से सफाई कर पाए। जयन्ती इन परिस्थितियों से गुजर रही थी तो सहानुभूति से बोली " हां एसी परिस्थिति बहुत मुश्किल हो जाती है। मैं समझ सकती हूं।"

उसकी भाभी कहने लगी" हां दीदी, आपका तो फिर भी ठीक है, कम से कम आंटी इतना बोलती तो नहीं है। दादी तो बहुत ज्यादा बोलती हैं। एकदम परेशान कर रखा है। "

जयन्ती ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह जानती थी कि दादी की सेवा उसकी माँ ही करती हैं। इतने पर भी भाभी को दादी नहीं पसन्द। और जबकि दादी की एसी हालत कभी कभी ही होती है। फिर भी भाभी को उसकी विक्षिप्त सास दादी से बेहतर लग रही थी। जिस समस्या का रोना भाभी रो रही थी वो तो जयन्ती के यहाँ रोज की बात है।

जयन्ती यह सब सोच ही रही थी कि सास के कमरे से कुछ आवाज आई और वह यह सोचते हुए उठ गई कि सुख दूसरे के और दुख अपने।


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