अपनेपन के मुखौटे में छिपे भेड़िये
अपनेपन के मुखौटे में छिपे भेड़िये
दो अलग अलग वर्ग की महिलाओं की भिन्न जीवन शैली किंतु एक स्तर पर समानता थी। वह समस्या हर घरेलू और कामकाजी महिला की है। वह समस्या सर्वव्यापी है। जरुरत है अपनी नजर को पारखी करने की और सचेत रहने की।
चारु आज बारबार अपनी माँ से ज़िद कर रही थी कि मामा के घर नहीं जाना। उधर सरगम को आँफिस के लिए देर हो रही थी, ज्यादा देर हो गई तो पूरे दिन की लीव न लग जाए, सरगम चिंतित हो उठी "ओफ्फो चारु ये तुम्हारी रोज की आदत हो गई है। वहाँ सब लोग तुम्हें प्यार करते हैं। और मैं तुम्हारे लिए चॉकलेट लेकर आउंगी।"
ये लगभग रोज का ही किस्सा था। पहले तो चारु खुशी खुशी मामा के घर जाती थी। किन्तु अब बीते कुछ दिनों से जाने के नाम से भी रोने लगती।
मामा कौन? ये सरगम के दूर के भाई लगते थे। जब उनका ट्रांसफर सरगम के ही शहर में हुआ तो सरगम और उसके पति बहुत खुश हुए कि चलो कोई तो अपना है इतने बड़े शहर में। अब अक्सर ही वह आँफिस जाते समय चारू को उनके पास ही छोड़ जाती।
ये तो हुई एक उच्चवर्गीय कामकाजी महिला अब आइए देखते हैं एक मज़दूर वर्ग की महिला।
अंजू आज परेशान सी घर में आई। ठेकेदार ने देर से पहुंचने की वजह से उसकी आधे दिन की तनख्वाह काट ली। सारा दिन हाड़ तोड़ मेहनत करके परिवार का पेट पालने का भी जुगाड़ नहीं हो पाया। और आते ही उसकी बेटी की एक ही रट" मुझे भी अपने साथ ले चला करो अम्मा। मुझे बाबा के घर नहीं रहना। "
बाबा कौन? बाबा उसके पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग थे। जो अंजू की बेटी को बहुत ही लाड़ प्यार दिखाते थे। अंजू उन्ही के पास अपनी सात साल की बेटी को निश्चिंत हो छोड़कर काम पर जाती थी।
अंजू अपने सारे दिन की चिंताओं को ओडे़ बेटी की बात को अनसुना कर काम में लग गयी। जब बेटी दोबारा बोली उसे झिड़की देकर चुप जाने को कहने लगी। मन ही मन सोच रही थी कि इसे लगता है वहाँ आराम है। सारा दिन काम करती हूँ इसे कहाँ साथ लिए घूमूंगी? और हर तरह के गन्दे लोग होते हैं वहां। यहां कम से कम बाबा के हाथों में सुरक्षित तो है।
दोनों ही कहानियों में माँ को लगता है कि उनके बच्चे सुरक्षित हैं क्योंकि वे जान पहचान वाले लोगों के पास हैं। लेकिन एक दिन चारु अपने प्राइवेट पार्ट और पेट में दर्द बताते हुए रोने लगी। जब सरगम और उसके पति उसे डाक्टर के पास लेकर गए तो उस छोटी सी बच्ची के यौन शोषण की बात पता चली। सरगम और उसके पति तो जैसे सन्नाटे में आ गए। चारु से जब प्यार से पूछा गया तो पता चला कि यह सब कुछ रिश्ते के उन मामा के द्वारा ही किया जा रहा था।
उधर एक दिन जब अंजू घर आई तो उसकी बेटी घर पर नहीं थी। बाबा से पूछा तो कहने लगे कि अभी तो खेल रही थी। बाहर चली गई होगी अभी आ जाएगी। जब बहुत देर हो गई तो अंजू उसका पति और बाबा उसे ढूंढने लगे किंतु बच्ची का कोई पता न लगा। पुलिस की कार्यवाही में फूल सी बच्ची की कुचली हुयी क्षत विक्षत लाश मिली। और छानबीन में पता चला कि बुजुर्ग बाबा के बेटे ने ही बच्ची के साथ शारीरिक शोषण के बाद उसकी हत्या कर दी थी।
दोनो ही घटनाओं के पात्र अलग अलग पृष्ठभूमि से हैं। किंतु बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न सभी जगह व्याप्त है। यदि आपके बच्चे आपसे कुछ कहना चाहते हैं तो उसे धैर्यपूर्वक अवश्य ही सुनें। हो सकता है कोई आगामी दुर्घटना टल जाए। बच्चों से इतना मित्रवत रहें कि वे आपको अपनी समस्याएं बेझिझक बता सकें। इस कहानी में एक बच्ची की जान ही चली गई और दूसरी बच्ची इन कभी न भरने वाले घावों को हमेशा ढोती रहेगी। शरीर के घाव भले ही भर जाएंगे किंतु आत्मा सदैव दुखती रहेगी। विश्वास अवश्य करें किंतु अतिरिक्त विश्वास नहीं। हमेशा ही ध्यान रहे कि बच्चों को प्रति यौन उत्पीड़न का खतरा अजनबी व्यक्ति से अधिक नज़दीकी रिश्तों में अपनेपन के मुखौटे में छिपे हुए भेड़ियों से अधिक है। सतर्क रहें।
