मूल्यवान गहना
मूल्यवान गहना
पूर्वी को गहनों से बहुत लगाव था। अन्य किसी भी साज श्रृंगार में उसकी रुचि नहीं थी किंतु स्वर्ण आभूषणों की चमक पर उसकी नजरें अटक ही जाती थीं। पति अनिल की तनख्वाह वैसे तो ठीक-ठीक थी किंतु घर खर्च के बाद गांव में माता पिता की भी थोड़ी बहुत मदद करनी ही होती थी और कुछ यह भी कि आभूषण बनवाना अनिल को व्यर्थ लगता था।
पूर्वी घर पर ही ट्यूशन देती थी और थोड़ी बहुत सिलाई भी करती थी।
कल जब वह रिश्तेदारी की शादी में शामिल होने गयी तो उसकी मामा की बेटी कोयल भी मिली। कोयल बात बात में अपने गहनों के बारे में बात करती और दिखाती कि कौन सा गहना उसे कब गिफ्ट में मिला।
पूर्वी का मन उदास हो गया। उसने सोचा कि अपने कमाये हुए रुपयों को वह इकट्ठा करेगी और उनसे थोड़े बहुत गहने बनवाएगी। उसकी छोटी छोटी बचत पर उसका पति भी अधिकार नहीं जताता था और वह उस धन को कहाँ खर्च करे इसपर कभी कोई प्रतिबंध भी नहीं लगाता था।
उसने आराम का समय कम कर दिया और उस समय में सिलाई करती, और ट्यूशन भी बढ़ा दिए। छोटी छोटी बचत अपने अन्य खर्चों को काटकर भी करने लगी। काफी समय तक वह बचत करती रही।
जब कंगन के लायक रुपये इकट्ठे हो गए। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। पति को बताया कि आज तो वह कंगन खरीद कर लाएगी। बाजार जाने के लिए
जल्दी जल्दी काम निपटा रही थी कि दरवाजे पर घंटी बजी। देखा तो उसकी कामवाली बाई राजकुमारी खड़ी थी। राजकुमारी बिना बताए ही चार दिन से नहीं आ रही थी।
राजकुमारी को देखकर पूर्वी ने राहत की साँस ली कि चलो अब थोड़ी तसल्ली से काम हो जाएगा। दरवाजा खुलते ही वह चुपचाप से आकर काम में लगे गयी। पूर्वी ने न आने के लिए डांटा तब भी उसने कोई जबाब नहीं दिया बस सिर झुकाए बर्तन साफ करती रही।
पूर्वी को यह चुप्पी असहनीय लगने लगी। अब काम की इतनी जल्दी तो थी नहीं क्योंकि राजकुमारी बाकी बचा हुआ काम देख ही लेगी तो दो कप चाय बनाकर राजकुमारी से कहने लगी कि पहले चाय पी ले फिर काम कर लेना। राजकुमारी बिखरी हुई सी चाय का प्याला ले कर फर्श पर ही बैठ गयी।
पूर्वी ने पूछा "क्या बात है? घरवाले से झगड़ा हुआ है क्या?"
"नहीं दीदी" उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
"तब कोई और परेशानी? "पूर्वी ने कुरेदा तो राजकुमारी के आंसू बह निकले। उसने बताया कि उसके बेटे के तबीयत काफी खराब थी। और डाक्टर ने आप्रेशन बता दिया है। आप्रेशन नहीं करवाया तो जान को भी खतरा है। राजकुमारी की एक ही संतान थी। राजकुमारी अब बिलख बिलख कर रोने लगी क्योंकि रोज की दवाई और डाक्टर की फीस, चैकअप इन सब में ही सारी जमा पूँजी खर्च हो गयी अब आप्रेशन के लिए पैसे बिल्कुल भी नहीं बचे थे।
पूर्वी की आंखों के आगे उस मासूम का चेहरा घूमने लगा। वह चुपचाप उठी और रुपये की गड्डी लाकर राजकुमारी के हाथ में थमा दी। "ये लो, घर जाओ और बेटे का आप्रेशन करवाओ।"
राजकुमारी चौंक गयी, वह किसी भी तरह से इतनी बड़ी रकम लेने को तैयार नहीं थी। पूर्वी ने अधिकार से कहा "यह रुपये तुम्हारे लिए नहीं, मेरे बेटे के लिए हैं।"
राजकुमारी के जाने के बाद अनिल कमरे से बाहर आया और कहने लगा "और तुम्हारे कंगन?"
पूर्वी आत्मसंतोष से दमकते चेहरे के साथ बोली "बच्चे कंगन से अधिक मूल्यवान हैं। कंगन फिर कभी…!"