एनिवर्सरी- केक कटना था पर अभिनव का जी कैसे मानता...वसंत की यह कैसी दस्तक ? एनिवर्सरी- केक कटना था पर अभिनव का जी कैसे मानता...वसंत की यह कैसी दस्तक ?
एक बार फिर से जी उठी थी वो। फिर से खुशहाली ने दरवाज़े पर दस्तक दी थी। एक बार फिर से जी उठी थी वो। फिर से खुशहाली ने दरवाज़े पर दस्तक दी थी।
दिया हुआ है दिया हुआ है
पुनर्निर्माण कर यहाँ एक विश्व तुमको है बनाना। पुनर्निर्माण कर यहाँ एक विश्व तुमको है बनाना।
भई, तुम लोग तो बेरोजगार हो, कोई काम धंधा तो है नहीं तुम्हारे पास भई, तुम लोग तो बेरोजगार हो, कोई काम धंधा तो है नहीं तुम्हारे पास