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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Inspirational

मेथी के परांठे

मेथी के परांठे

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नायरा की बड़ी मौसी शारदा के बेटे शिवम की शादी थी। नायरा अपने पति प्रवाल के साथ शादी में आई थी। नायरा के मायके से सभी लोग भी शादी में आये थे। यानी नायरा की मां सरला, पापा शिवेन्दु, छोटी बहन कियरा, सभी। नायरा की सब मौसी , मामी सब लोग सपरिवार आये हुए थे। शारदा मौसी के परिवार में यह पहली शादी थी इसलिए सब लोग सपरिवार धूमधाम से आये थे और खूब महफ़िल जम रही थी।  


नायरा की शादी के बाद उसके मायके वालों के यहां यह पहली शादी थी इसलिए प्रवाल और नायरा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा था। प्रवाल की सभी सालियों ने प्रवाल को घेर लिया था। प्रवाल का स्वभाव भी बड़ा हंसमुख था। थोड़ी ही देर में वह सबका चहेता बन गया था।  


शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हो गई। दो दिन तक सब लोग साथ साथ रहे। खूब मस्ती की। प्रवाल की सब रिश्तेदारों से अच्छी जान पहचान हो गई थी। सब लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे। नायरा को बड़ा नागवार गुजरा। उसे अब वह "भाव" नहीं मिल रहा था जैसा कि पहले मिलता था। कहने लगी " सब लोग लुढ़कने लोटा हो। कल तक तो नायरा नायरा कर रहे थे। एक ही दिन में अपनी निष्ठाएं बदल लीं ? दल बदल करके प्रवाल के पाले में चले गए। दलबदलू कहीं के " ?


सब लोग उसकी इस बात पर जोर से हंसे और कहने लगे " हम तो ना नायरा के हैं और ना प्रवाल जीजाजी के। हम तो 'माल' के सगे हैं। जो भी 'माल' खिलाएगा हम तो उसी के रहेंगे।" एक बार फिर जोर का ठहाका लगा।  


नायरा ने चलने की तैयारी कर ली थी। सभी लड़कियां कहतीं रह गई "जीजू आज आज और रुक जाओ ना। कल चले जाना। हम भी कल ही जाएंगे। आज और जी भरकर मस्ती करेंगे" 


प्रवाल ने कहा " भई, तुम लोग तो बेरोजगार हो, कोई काम धंधा तो है नहीं तुम्हारे पास। मगर मैं बेरोजगार थोड़ी ना हूं। मुझे तो नौकरी करनी है। जाना तो आज ही पड़ेगा। नायरा का मन भी कर रहा था कि प्रवाल एक दिन और रुक जाएं , पर प्रवाल मान ही नहीं रहे थे।  


शारदा ने हंसते हुए कहा " कंवर साहब, आपकी सालियां इतने प्यार से कह रहीं हैं तो एक दिन और रुक जाइए ना। ऐसे नसीब हर किसी के नहीं होते हैं। बड़े भाग्यशाली हैं आप जो आपको इतनी अच्छी सालियां मिलीं हैं। और आज वैसे भी मैं मेथी के परांठे बनाने वाली हूं। मेरे परांठे खाकर कल जाइयेगा ना।"


प्रवाल के मुंह से एकदम निकला " मेथी के परांठे ? अरे वाह , बहुत पसंद हैं मुझे।"  


"फिर तो आप आज मेथी के परांठे खाकर ही जाना।" नायरा की मां सरला ने भी आग्रह किया।  


"बहुत दिन हो गए मेथी के परांठे खाए हुए। ऐसा लगता है कि जैसे एक शताब्दी गुजर गई हो।" एक गहरी सांस छोड़ते हुए प्रवाल ने कहा।  


बीच में नायरा बोल पड़ी " मौसी , ये मेथी के परांठे भी कोई अच्छी डिश थोड़ी है। कुछ अच्छा सा बनाओ ना। जैसे पनीर लबाबदार और भी बहुत कुछ" 

शारदा ने कहा " ना बेटा ना। आज तो मेथी के परांठे ही बनेंगे। आज बहुत दिनों बाद तेरे मौसाजी ने 'मेथी के परांठों' की फरमाइश की है। उनकी फरमाइश मेरे लिए भगवान का आदेश है। इसलिए बनेंगे तो मेथी के परांठे ही। हां, तेरे लिए तेरी पसंद का खाना बना दूंगी।"  


नायरा कहने लगी " मौसी , कौन जमाने की बातें कर रही हो ? अब कौन मानती है पति का आदेश ? अब तो पति पत्नी बराबर के हैं। कोई किसी को आदेश नहीं देता " 


" ना बेटा ना। तेरे मौसाजी कभी कभार ही अपनी इच्छा बताते हैं। जो कुछ मैं बना देती हूं, खा लेते हैं प्रेम से। कभी भी नुक्स नहीं निकालते। ऐसे आदमी का ध्यान हम औरतों को ही रखना पड़ता है। इसलिए मैं उनकी पसंद का बहुत ध्यान रखती हूं। पहले मैं मेथी के परांठे बनाना भी नहीं जानती थीं लेकिन जब मैंने मेरी सास को मेथी के परांठे बनाते और इनको उन्हें बड़े चाव से खाते देखा तो उसी दिन मेथी के परांठे बनाना सीखा। इनको जब भी खुश करना होता है तो मैं उस दिन मेथी के परांठे बना देती हूं। ये भी समझ जाते हैं और पूछ लेते हैं कि आज क्या फरमाइश है ? और मैं अपनी फरमाइश बता देती हूं। पर आज तो इन्होंने आगे से ही कहा कि आज मेथी के परांठे खाने की इच्छा हो रही है। तो अब तू ही बता कि अपने "भगवान" की इच्छा पूरी करूं या नहीं" ? 


"अरे मौसी, अब औरत पति के पांव की जूती नहीं रही। हम किसी का आदेश क्यों मानें ? आखिर हम भी तो उनके बराबर हैं कोई कम तो नहीं" 


" देख बेटी, तेरे जितने पढ़ी लिखी तो मैं हूं नहीं। पर यह बात समझ ले कि इन्होंने कभी भी मुझे कोई आदेश नहीं दिया। मुझे खाना तो बनाना ही है , क्यों ना पति की इच्छा का ही बनाऊँ ? इसमें मेरा जा क्या रहा है ? पति भी खुश और खुश पति को देखकर मैं भी खुश। अब बताओ, इतनी छोटी सी बात पर घर में खुशहाली आती है तो यह काम तो बार बार करना चाहिए कि नहीं ?" 


नायरा निरुत्तर हो गई। झूठे नारीवद के चक्कर में पति की इच्छाओं का आदर नहीं करना ग़लत लगने लगा। शारदा खाने की तैयारी करने चली गई।  


थोड़ी देर बाद जब सरला और नायरा एकांत में मिली तो सरला ने कहा " तेरे पापा थोड़े से माडर्न विचारों के हैं। हालांकि अब बदल गए हैं। पर पहले थोड़ा दिखावा भी करते थे। अंग्रेजी तौर तरीके ज्यादा पसंद थे उन्हें। इसलिए घर में ये मेथी , मूली के परांठे जैसा खाना पसंद नहीं था उन्हें। हमने भी उनकी पसंद का खयाल रखते हुए वही खाना बनाना और खाना शुरू कर दिया था जो उन्हें पसंद था। अपनी पसंद / नापसंद उनकी पसंद में कहीं विलुप्त हो गई। इसलिए अपने घर में ये सब नहीं बनते हैं। अगर प्रवाल जी को ये सब बहुत पसंद हैं तो तुझे तो ये सब सीखने चाहिए ? यही तो उम्र है सीखने की। चल मेरे साथ रसोई में चल। तुझे सिखाती हूं मेथी के परांठे बनाना। और हां, ये फालतू 'नारीवाद' अपने दिमाग से निकाल दे। घर परिवार में ना कोई छोटा होता है और ना बड़ा। सब एक दूसरे के लिए त्याग करते हैं। क्या प्रवाल रोज रोज अपनी फरमाइश थोपते हैं तुझ पर ? नहीं ना। फिर इतनी नौटंकी क्यों ? ये नौटंकी तो नेताओं, बुद्धिजीवियों को ही करने दो। घर में घर की तरह रहो, तानाशाह की तरह नहीं।"  


नायरा को अब घर, परिवार, रिश्तों की अहमियत पता चल गई थी। उसने अपने हाथों से मेथी के परांठे बनाए और प्रवाल को खिलाए। आज परांठे बनाने में उसे एक अलग ही आनंद आ रहा था। सरला ने रास्ते के लिए भी कुछ मेथी के परांठे रख दिए थे। जब रास्ते में नायरा ने लंच बॉक्स खोला और प्रवाल ने मेथी के परांठे देखे तो वह बहुत खुश हुआ। प्रवाल को खुश देखकर नायरा गदगद हो गई। आज उसे मौसी और मां से बड़ा सुंदर सबक मिला था।  



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