वसंत की दस्तक
वसंत की दस्तक
आज वसंतपंचमी है। अंग्रेजी हिसाब से, अभिनव की वैवाहिक वर्षगांठ भी। अद्भुत संयोग रहा। जिसको जिसको पता चला, वह यही कह रहा था, ‘वाह अभि बाबू, आज के दिन, तुम्हारे जीवन में वसंत आया और आज ही प्रेम का त्यौहार भी...!’ कहने का ढंग कुछ ऐसा होता; मानों अकस्मात, रूमानी बयार चल पड़ी हो- ‘बिल्ली के भाग से, छींका टूटा’ वाली तर्ज पर! बार बार, ऐसा ही कुछ सुनकर, वह झेंपने लगा था। बात बदलने की गरज से, उसने कहना शुरू किया, ‘आज सरस्वती पूजन भी तो है...उसकी चर्चा कोई, क्यों नहीं कर रहा?!’ कहते कहते, अतीत जीवंत हो उठा.
वसंतपंचमी, सरस्वती- पूजन और प्रेम..। तीनों साथ आ पहुँचे- यादों की चौखट तक! कॉलेज में, सरस्वती- वंदना के सुरों को, मुखरित करती, वह सुन्दरी..। स्वर्ग की अप्सरा सा रूप..। गरिमामयी छवि, लहराते, डोलते..। लम्बे, चमकीले केश!! मंत्रमुग्ध होकर, वह देखता रहा था। तालियों की गड़गड़ाहट, उसके मनोमस्तिष्क पर, देर तक छाई रही। किन्तु उसका नाम जानकर, किंचित निराशा हुई, अभिनव को। एनी नाम की वह युवती ईसाई थी। विजातीय होने के बावजूद, वह एनी में भविष्य की संभावनाएँ , तलाशने लगा- उसका जादुई, भव्य व्यक्तित्व, बरबस, अपनी ओर खींचता था.
एक ही कक्षा में पढ़ने का, सौभाग्य मिला उनको। पहलेपहल एनी का रवैया, मतलबी रहा। उसने नोट्स लेने के लिए, अभि से दोस्ती गाँठी थी; परन्तु अभिनव की असाधारण शैक्षिक- अभिवृत्ति, धीरे धीरे, उसे आकर्षित करने लगी। इस बीच, बी। टेक। के लिए, अभिनव का चयन हो गया। बेहतर भविष्य के लिए, अभि को जाना ही था। भरे मन से दोनों ने विदा ली। अवसर मिलने पर अभिनव, पुराने कॉलेज के, चक्कर काट लेता था- प्रेयसी की एक झलक पाने को!
फिर एनी, किसी सुदर्शन युवक के साथ, नजर आई। वह उसे टहोका मारकर, बात कर रहा था। अभि का कलेजा, भभक पड़ा! ‘रोमी मेरा फॅमिली फ्रेंड है’ एनी ने सफाई देते हुए कहा था। ‘फॅमिली फ्रेंड होने का मतलब यह नहीं कि एकदम बेलिहाज हो जाए...’ अभिनव को अपना रोष प्रकट करने के लिए, शब्द नहीं मिल रहे थे.’ ‘लुक अभि...’ एनी ने पलटवार किया, ‘मेरी मॉम, उसमें मेरे फ्यूचर हसबैंड को देख रही हैं’ ‘जाहिर है...उसके पास चमचमाती मोटर बाइक है और मेरे पास बस एक फटीचर साइकिल’ अनायास ही अभिनव के स्वर से, व्यंग फूट गया.
एनी के तेवर, कुछ ढीले हुए थे। उसने समझाने के अन्दाज में कहा, ‘अभिनव, मेरे और रोमी के बीच, फिलहाल कुछ नहीं है। लेकिन तुम जल्दी लाइफ में सेटल नहीं हुए तो...’ शंका निर्मूल नहीं थी। वक्त की उठापटक ने, उन्हें दूर ला फेंका। जब तक अभिनव, अपना करियर संवार पाता; एनी, रोमी की हो गई! फेसबुक पर, उससे जुड़ने प्रयास किया...पर व्यर्थ! एनी ने अभि को, मित्र- सूची में नहीं जोड़ा। कॉलेज वाले, चंद कॉमन फेसबुक फ्रेंड थे...विशेषकर उमंग; लिहाजा खैर- खबर मिल जाती। रोमी के साथ, उसकी हंसती हुई तस्वीरें, भली लगतीं...अभि तो उसकी ख़ुशी में ही खुश था। दिल को समझा लिया- ‘वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन...उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर, छोड़ना अच्छा!’
फेसबुक पर, उमंग ने कुछ साझा किया था...यह तो एनी की पोस्ट थी! अब पता चला- रोमी की मृत्यु के उपरांत, एनी, नितांत अकेली हो गई। उसने आज ही नन बनने का फैसला लिया था। पूरा मामला जानने के लिए, अभिनव ने उमंग को फोन लगाया। उमंग ने बताया, ‘एनी की माँ पहले ही चल बसी थीं। वह अपने भतीजे सैम को, गोद लेना चाहती थी। रोमी को व्यापार में घाटे के कारण, हृदयाघात हुआ तो सैम के माँ- बाप ने उसे वापस बुला लिया...उनके लिए तो सबसे बड़ा रुपैया था...जहाँ पैसों के लाले पड़े हों...वहां भला क्यों रुकना?!
अभिनव के लिए, खुशहाली का दिन था और एनी के लिए...एक तरफ उत्सव तो दूसरी तरफ बैराग!
एनिवर्सरी- केक कटना था पर अभिनव का जी कैसे मानता...वसंत की यह कैसी दस्तक ?

