औरतें
औरतें
बिजनेस आइकॉन धीर बहादुर बनाम डी.बी.और एम.एल.ए. अमित रंजन, बैठक कर रहे थे। बहुत समय तक, प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति की चर्चा चली; उसके बाद बढ़ते हुए अपराधों की। अंत में व्यक्तिगत बातें भी हुईं। बातचीत को दिलचस्प बनाने के लिए, उसमें, घर की औरतों का जिक्र, जरूरी हो गया; कुछ यूँ- जैसे खाने के बाद, स्वीट डिश की तलब!
"डी. बी. साहब, आपने अपनी प्रॉपर्टी, दोनों पत्नियों में बांट दी है। उसे लेकर कभी दोनों में अनबन तो नहीं हुई? मेरा मतलब... कोई झगड़ा... कोई मतभेद ...??" अमित बियर के सुरूर में थे; फिर भी यह पूछते हुए, झिझक रहे थे।
"औरतें ... ये औरतें ही अमित साहब... हर समस्या की जड़ हैं... समस्या की जड़ ही क्यों, ये तो अपनेआप में ही समस्या हैं! घर घर की कहानी है यह..." यह सुनकर, अमित रंजन के मुख से बोल न फूटा। वे स्तब्ध रह गए।
धीर बहादुर के परिवार में, कुछ और 'सूरमा' भी थे; जो दो दो औरतों को 'साधे' थे; पर कानून, समाज और बिरादरी; सब मिलकर भी इन्हें कटघरे में खड़ा नहीं कर पा रहे थे। पैसों का रुतबा, कुछ ऐसा ही होता है!
अमित घर लौटते समय, कार की पिछली सीट पर बैठे बैठे, यही सब सोचते रहे। उनकी बिटिया सुगंधा और डी. बी. साहब की सुपुत्री मान्या, एक ही कक्षा में पढ़ती रहीं। वयः संधि से गुजरते हुए, वे कुछ अधिक संवेदनशील हो गई थीं। सयानियों की तरह बतियातीं। एक दिन लंच ब्रेक के दौरान, मान्या ने सुगंधा से कहा, "पता है, डैड ने बड़ी माँ को, हमसे अलग कर दिया है"
"अलग ... मतलब?!"
"मतलब, दूसरे फ़्लैट में शिफ्ट कर दिया है।"
"आई सी..." सुगंधा को समझ न आया कि वह इस पर, खुशी व्यक्त करे या दुख! "गलत बात है सुगंधा" मान्या ने ही अंततः, वार्तालाप को सही दिशा दी, " बड़ी माँ, कितने प्यार से तेल लगाकर, हम बहनों के बाल, बांधा करती थीं। उनकी हाय लगेगी डैड को... हमें... हमारे परिवार को!"
बड़ी माँ यानी धीर बहादुर की पहली घरवाली। गहरे सांवले रंग की महिला, किन्तु कालांतर में उनके एकमात्र पुत्र की माता बनी! दूसरे विवाह से उन्हें चार चार कन्याएँ मिलीं परन्तु बेटा एक भी नहीं!!
पहली शादी के समय वे एक बेरोज़गार, नाकारा युवक थे। दहेज से मिली एकमुश्त रकम ही, उनके व्यापार की नींव बनी। किन्तु धन के लोभ ने, एक दबे रंग की महिला को, उनके संग बांध दिया था।
कई बरसों तक सन्तान न हुई तो पत्नी की सहमति से ही, दूसरी ले आए।
दूसरा ब्याह उनके मन के अनुरूप, किन्तु खानदान का चिराग, उन्हें न दे सका! दूसरी पत्नी अनाथ थी। माता पिता गुजर चुके थे। रिश्तेदारों ने तरस खाकर, ब्याह निपटाया। फेरों के बाद पता चला कि पति, पहले से ही शादीशुदा था।
वह विरोध नहीं कर सकी। उसके सर पर, कोई हाथ रखने वाला नहीं। शिक्षा भी अधूरी। दुनिया जहान के लोग, बेसहारा स्त्री का लाभ उठाने को तत्पर। ऐसे में सर पर छत, भरण पोषण का आसरा और सुख साधन मिलने पर, उसने परिस्थिति से समझौता कर लिया।
लोग कहते हैं, डी. बी. साहब , बड़े भाग वाले हैं। दो स्त्रियों को भोगने का सुयोग रहा, उनके जीवन में...साथ ही दोनों परिवारों में मुखिया की प्रतिष्ठा। धीर बहादुर की पाँचों उंगलियाँ घी में और सर कढ़ाई में! जबकि कुछ ऐसे अभागे होते हैं कि दो तो क्या, एक ही विवाह का सुख, नियति में नहीं होता।
सौभाग्य यह भी कि लम्बी प्रतीक्षा के बाद, उनकी पहली पत्नी की गोद भर गई, बेटा पाकर! यह और बात थी कि पति के मन में, वह तब भी जगह नहीं बना पाईं। पतिधर्म के नाम पर वे, एक बेटा तो उसकी गोद में डाल गए; किन्तु उनका झुकाव सदा, 'छोटी' की तरफ ही रहा!! रहते भी वे छोटी के संग ही थे। बेटा न होता तो वह उसके बसेरे की तरफ, मुड़कर न देखते। केवल खर्चे उठा लेने भर से, दायित्व की पूर्ति तो नहीं हो जाती!
धीरे धीरे काल चक्र घूमता रहा। सभी बेटियों के विवाह हो गए। अकेलापन उन्हें घेरने लगा था। समय के तेवर, कब, क्या हों; किसे पता! बेटा पहले ही, अपनी माँ के साथ हुए अन्याय से रुष्ट था; बेटियाँ भी पराई हो गईं। धीर बहादुर जिंदगी से नाराज़ थे; सो दिल के दौरे से, बच न सके।
परिवार वालों ने उन्हें अच्छे से अच्छे अस्पताल में भर्ती कराया। अच्छे से अच्छा इलाज करवाया। पत्नियाँ बारी बारी से, भोजन का टिफिन लेकर आती रहीं। कभी कभार बेटियाँ भी चेहरा दिखा देतीं। लेकिन फिर भी डी. बी . को एक नामालूम सी कमी महसूस होती रही।
वे एक दिन पहले ही डिस्चार्ज हो गए। घरवालों को सरप्राइज़ करना चाहते थे। दबे पाँव दूसरी पत्नी की सुध लेने आए तो उसकी, गुप्त डायरी हाथ लगी। डायरी के तुड़े मुड़े पन्नों की आड़ में छिपी, एक तस्वीर भी मिली जिसके पीछे बॉलीवुड के पुराने गाने की कुछ पंक्तियाँ, आड़ी टेढ़ी रेखाओं में ढल गई थीं -
बचपन की मोहब्बत को
दिल से न जुदा करना
जब याद मेरी आए
मिलने की दुआ करना
श्रीमती जी, बचपन में उस तस्वीर की लड़की जैसी ही तो दिखती थीं... उनके बचपन की कई तस्वीरें, पतिदेव पहले ही देख चुके थे, इसलिए मामला बिल्कुल साफ था। पर यह क्या... ना जाने कौन मुआ, छायाचित्र में ...श्रीमती जी के गले में बाहें डाले, झूले पर विराजमान था!
धीर बहादुर को जोर का झटका जोरों से लगा! दिल के टुकड़े सहेजते हुए, वे पहली पत्नी की शरण में जाने को तत्पर हुए। बेटे को वे, एक आँख नहीं सुहाते थे। जबसे वह अपने पैरों पर खड़ा हुआ; उसकी, उनके प्रति उपेक्षा बढ़ती ही जा रही थी। फिर भी वे बाप होने के नाते, उस पर अपना हक जमाना नहीं भूलते।
बड़ी आस लेकर, वे पहले वाली सहधर्मिणी को देखने आए; किन्तु उस घर में पैर रखने के पूर्व ही पुत्र ने घोषणा की कि उसकी माँ, उनसे तलाक चाहती थी और इस सिलसिले में वकील से मिलने गई थी। डी. बी. साहब के, पैरों तले की मजबूत जमीन, अब खिसकने लगी थी!!
