आखिरी खत

आखिरी खत

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प्रिय मयुरी,

तुम कैसी हो वहाँ, मैं यहाँ ठीक हूँ। आशा करता हूँ घर में भी सब कुशल-मंगल होगे। अंकल आंटी कैसे है। उनकी सेहत ठीक रहती होगी। आंटी ने पथरी का ऑपरेशन करवाया था उसमें अब आराम होगा। अंकल के रिटायर्मेंट के कम ही दिन रह गए होगे। फिर तो वो भी हमारे ही शहर में आ जाएगे। तुम्हारी पढ़ाई का भी आखरी समस्टर चल रहा है। आशा करता हूँ तुम्हे वहाँ कोई परेशानी नही होगी। फिर तुम भी हॉस्टल से यहीं आ जाओगी।

फिर हम जल्दी जल्दी मिल सकेगे। और हाँ हमारे छुटकु का क्या हाल है, अब तो बोलने भी लग गया होगा। और शरारतो का आतंक भी फैलाने लगा होगा। हाहाहाहा। सच बच्चे कितने प्यारे होते है जब हमारे होगे तब बात कुछ और होगी।

मैं तमसे कुछ कहना चाहता हूँ। मेरे मन में काफी सारे सवाल है। जब हम मिलेगे तब तुमसे पुछुँगा। खत में ये सब कह नही पाऊँगा।

तुम जानती हो मुझे एक बहुत बढ़िया सरकारी नौकरी मिल गई है। जादा काम का लोड भी नही है इस नौकरी में। तुम कह रही थी कि मैं जब कमाने लगुगा तब शादी करेगे हम। कुछ महिनो में मेरे पास अपनी पुंजी जुड़ जाएगी और मैं अपना एक छोटा सा फ्लेट भी खरिद लुगा। और जब तक तुम्हारी पढ़ाई भी पुरी हो जाएगी। फिर हमें कोई परेशानी नही होगी। किराये के घर में भी नही रहना पड़ेगा। हाँ एक बात और दादी अपने साथ ही रहेगी। तुम्हे कोई एतराज तो नही? वो हमारे साथ रहेगी तो हमें तो फायदा ही है। मैं जब डुयुटी पर जाऊँगा तब तुम अकेली नही रहोगी।

और जब हमारे नन्हे-मुन्ने होगे तो दादी उन्हे संभाल लेगी , वो अनुभवी है। हम हर महिने घुमने जाया करेगे। छुट्टियों में बहुत मस्ती करेगे , और हाँ कभी कभी दादी को भी ले जाया करेगे। तुम तो जानती ही हो कि दादी में मेरे प्राण बसते है। माँ पापा दोनो नोकरी के लिए दूसरे शहर में रहते थे तो मैं बचपन से ही दादी दादा के पास रहा हूँ। चुकि अब दादा जी तो है नही। ना तो वे भी मेरे साथ ही रहते। मैं तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ।

 तुम्हारा अच्छे वाला दोस्त,

मोहन।

 तभी बाहर से मोहन का दोस्त दोड़ता हुआ आया , कहने लगा यार पड़ोस में जो शादी हुई है न , उसके घर बहू आ गई है। गली की सारी औरते बाहर खड़ी हो गई है। नई बहू को देखने।

मोहन ने कहा तो मैं क्या करुं। दोस्त ने कहा चल न देखते है   कैसा पटाखा आया है पड़ोस में। जरा तमीज से बोला कर, औरतो लड़कियो की इज़्ज़त किया कर। तभी मैं तेरे से दुर रहना चाहता हूँ। साले तेरे में तमिज नाम की चीज ही नही है। और एक मुक्का उसके तोंद में हसते हुए जमा देता है।

नही मैं नही जाऊँगा। ये घटिया हरकत मुझसे नही होगी। वैसे भी ये काम औरतो को ही शोभा देता है।

और मुस्कुराते हुए खत मोड़ कर अपने ऑफिस के बैग में रख लेता है , ताकि ऑफिस के रास्ते में पोस्ट कर सके।

जाड़े का मोसम था तो ऑफिस के लिए नहा कर मोहन कमरे की बालकनी में धुप सेकने खड़ा हो गया। नहाने के बाद गुनगुनी धुप उसे बहुत भा रही थी, साथ में मयुरी के प्यार को महसुस कर रोमांचित हो रहा था। सामने वाला घर शादी के लिए दुल्हन की तरह सजा हुआ था। तो नजर तो वहाँ जाना स्वाभाविक है, तो मोहन भी अपने ख्यालो में खोए हुए वही देख रहा था।

कि तभी उसकी नजर सामने बालकनी में खड़ी एक नवविवाहित लड़की पर गई| जिसके हाथों में शादी का चुड़ा और मेंहदी सजी थी। जो कि अपना तोलिया सुखाने आई थी। देखते ही उसकी आँखे फटी की फटी रह गई। वो उसे तब तक देखता रहा जब तक वो अंदर न चली गई। और मोहन की आँखों में समुंदर समा गया। मायुस हो कर वो अपने कमरे में आ कर सोफे पर बैठ गया। सोचने लगा अब इस खत का कोई मोल नही। तुम किसी ओर की हो गई हो।

खत निकाल कर फाड़ना चाहा परन्तु हाथ ने साथ नही दिया। और संभाल कर रख दिया, मयुरी को लिखा आखिरी खत, उसकी और अपनी प्रेम की आखिरी निशानी मानकर।


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