आखिरी गाने के बोल
आखिरी गाने के बोल
बारहवीं के नतीजे आ चुके थे और मैं कोटा जाने के ठीक पहले कुछ दिनों के लिए भैया के पर घर रुका था। उसी वक़्त उससे पहली बार बात हुई थी। दो साल पहले भैया की शादी में उसे पहली बार देखा था। झगड़ रही थी किसी लड़के से जो उसकी अच्छी तस्वीर लेने में नाकाम रहा था। आस-पास दिख रहे लोगों में शायद सबसे ज्यादा गोरी वही थी। अपने गेशुओं को उसने सामने की ओर कर रखा था। गालों पर उसके कुछ चीजों की लीपापोती साफ दिख रही थी और शादियों वाले चमकते लिबास में वो कहर ढा रही थी।
थोड़ी देर पहले गुपचुप के स्टॉल पर खड़ी भीड़ से परेशान हुआ। मैं अब एकदम शान्त सा बस एकटक उसे देख रहा था। घरवालों की नज़रों में एक आदर्श बच्चा बने रहने में भी बहुत नुकसान होता है, एक तो वही हो रहा था कि मैं चाह कर भी उससे बात नहीं कर पा रहा था। इस शादी के साथ मेरे अरमान भी खत्म हो गए क्योंकि मैं उसका नाम तक ना जान सका था। सोचा नही था कि कभी बात भी होगी उससे लेकिन दो साल बाद जब कोटा जाने में 3-4 दिन रह गए थे तभी फेसबुक नामक आभासी दुनिया में एक संदेश आया- मित्रता संबंधी, हाँ वही कहते हैं ना फ्रेंड रिक्वेस्ट ठीक वही। नाम से तो अनजान सा था पर साथ लगी तस्वीर इतनी जानी पहचानी तो थी ही की दो साल पहले हुई भैया की शादी की यादें ताज़ा कर दे।
वो मैसेज होते हैं ना 'वेन क्रश सेंट यू फ्रेंड रिक्वेस्ट' वाले ठीक वैसा ही हो रहा था। मैंने रिक्वेस्ट तो एक्सेप्ट नहीं की लेकिन एक संदेश भेजा, 'आप कौन ?'
उधर से जवाब थोड़ी देर से आया और तब तक कई बार खुद पर गुस्सा आ चुका था।
उसने भेजा, 'आरना नाम है मेरा'
मैंने फिर थोड़ी हिम्मत करके भेजा, 'तो?'
उसने जवाब दिया, ' मैं बोर हो रही थी, किसी अनजान से बात करनी थी।'
थोड़ी देर रुककर उसने फिर लिखा, 'शादी में जब घूर रहे थे तब तो नहीं पूछा था कि आप कौन ?'
मैंने लिखा, ''फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्टेड'' और भेज दिया।
कोटा जाने से पहले इन 3-4 दिनों में शायद हमने बहुत सारी बात की, जैसे उसे लिखना पसंद था और मुझे पढ़ना। मेरे से उम्र में 2 साल बड़ी, सामाजिक रीति-रिवाज़ों को गाली देने वाली वो लड़की क्रांतिकारी कविताएँ लिखती थी। मयकशी की लत थी और ख़्वाब देखती कि एक दिन बाबा के साथ पीऊँगी।
उसके पूछने पर मैंने बताया था कि कभी नुक्कड़ नाटक किया करता था, समाज में दिलचस्पी है लेकिन चाह डॉक्टर बनने की है और किसी भी प्रकार के नशे से परहेज़ है। वो आस्तिक थी और मैं नास्तिक, इस बात पर भी हमारी बहुत बहस हुई थी।
अब जब कोटा जाने का वक़्त आया तो मैंने अपना एक नंबर उसे दे दिया और बता दिया था कि शायद एक साल इंटरनेट से दूर ही रहूँगा और वक़्त मिलने पर मोबाइल से ही बात हो पाएगी।
कोटा पहुँचने के 3-4 दिन बाद एक नए नंबर ने मेरे छोटे से नोकिया में दस्तक दे दी थी। अब तक जो बातें पढ़नी पड़ती थी वो अब सुनाई देने लगी थी। क्लास के खत्म होते ही खाने जाना और फिर मेरा 1 घंटा रोज़ का उसके लिए था। हमने मैसेज पैक्स एक्टिवेट करवाये थे, क्योंकि उसे अपनी कविता भेजनी होती थी और मेरी लिखी हुई तारीफ उसे पढ़नी होती थी। उन्हीं मैसेज में अब वो गाने के बोल भेजती जिसे मुझे सुनने को बोलती और मैं उन गानों को मुँहज़बानी याद तक कर लेता था, ये अलग बात थी कि इससे पहले मेरी गानों में बहुत दिल्चस्पी नही थी। 3 खूबसूरत महीने कैसे बीते पता ही न चला। फिर दीवाली की छुट्टी में मुझे भैया के घर जाना था। मैं ट्रैन में अपनी सीट पर बैठा ही था कि उसने एक संदेश भेजा कि, " बेवकूफ़ हो तुम ?"
मैंने पूछा , "मैंने क्या कर दिया।"
उसने लिखा, "क्योंकि तुम खुद कभी नही कह पाओगे।"
"क्या ?" मैंने वापस लिखा।
फिर लिख कर आया, "अभी तुम्हारे हाथ में जो नोकिया है वो मेरे मैसेज के बाद जिस तरह थरथरा रहा है, ठीक वैसे ही मेरा दिल तुम्हारे मैसेज के बाद थरथरा जाता है, प्यार करती हूँ तुमसे गधे !"
मैंने उसे कॉल किया और बोला, "मैं भी।"
और भी बहुत कुछ बोलना चाहता था लेकिन नेटवर्क थोड़ी कमज़ोर पड़ रही थी उस वक्त।
फिर शायद एक महीने में हम एक-दूसरे में खो चुके थे। इन सब में मेरी पढ़ाई का अच्छा खासा नुकसान हो चुका था। इस बात का इल्म तब हुआ जब एक टेस्ट के नतीज़े बेहद खराब आये। मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था, समझ नहीं पा रहा था या समझना नहीं चाहता था कि गलती थी कहाँ। इसी बीच उसका कॉल आ गया और फिर मैंने गुस्से में उसे हर चीज़ का जिम्मेदार बता नोकिया का लाल वाला बटन दबा दिया। उस रात न मेरी आँखों में नींद आयी और न मेरे मोबाइल में उसका कॉल। फिर दो दिनों तक पढ़ाई को लेकर बेहद ज़िम्मेदार होने का दिखावा खुद से करने के बाद, मैंने उसे मैसेज भेजा, "आई एम सॉरी।"
फिर बहुत सारे कॉल्स किये लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अगले दिन सुबह एक मैसेज मेरे मोबाइल में मेरे जगने से पहले पहुँच चुका था, "मुझे कभी किसी की रानी नहीं बनना क्योंकि वो राजा के नाम से जानी जाती है। मुझे यही खुला गगन चाहिए जिसमें मैं अपनी कलम की पंख ले उड़ सकूँ। मुझे शायद प्यार के बारे में न बहुत अच्छा लिखना आता है और न ही प्यार करना। तुम पूछते थे न कि मैंने तुम्हें क्यों पसन्द किया क्योंकि तुममें प्यार करने का हुनर है। तुम्हें अच्छा लिखना नहीं आता है, फिर भी मेरी तारीफ में लिखे तुम्हारे हर्फ़ मुझे सोचने पर मजबूर कर देते हैं और तुम्हारे हर हर्फ़ से मुझे प्यार हो जाता है। तुमसे बात करते वक़्त मैं आज़ाद महसूस कर रही होती हूँ। तुमने मेरे जीवन के अब तक के सबसे खूबसूरत क्षण दिए हैं। काश की तुमसे मिल के तुम्हारा धन्यवाद कर पाती। लेकिन इन सब में मैं इतनी खो गयी कि तुम्हारे सपने का सोच नहीं पाई। माफ कर देना अगर कर सको तो। अगर वापस रिप्लाई नहीं करोगे तो मुझे लगेगा कि तुमने मुझे माफ़ किया। अलविदा !"
साथ में इस बार उसने एक आखिरी बार किसी गाने के बोल भेजे थे,
"तआरुफ़ रोग बन जाए तो उसको भूलना बेहतर
तआलुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अज़नबी बन जाएँ हम दोनों।"