Saket Shubham

Romance Drama

4.8  

Saket Shubham

Romance Drama

कोलकाता , पटना और प्यार

कोलकाता , पटना और प्यार

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हावड़ा जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर 8 पर मैंने भागकर छूटने वाली ट्रेन पकड़ी थी । बैग से टीशर्ट निकाली और बारिश में गीले हुए कपड़ों को बदलने के लिए वॉशरूम चला गया । बाहर निकला तो बारिश अब बंद हो चुकी थी । मैंने बैग से लाइटर निकालकर गीले टी-शर्ट को अंदर डाल दिया । डब्बे के दरवाजे के पास खड़ा हुआ और कानों में ईयरफोन और होठों के बीच सिगरेट डाल ली । बिना किसी के संगीत और ना ही कोई बातचीत के ईयरफोन बेवजह ही कानों में पड़ा हुआ था (हमारे बहुत सारे रिश्तो की तरह) । सिगरेट सुलगाने के बाद मैंने एक दो कश ली और सोचने लगा कि कम से कम इस ट्रैन ने तो प्लेटफार्म मेरे बिना नहीं छोड़ा जब मैंने पूरा सफर इसके साथ करने की ठान ली थी। इन सब उधेड़बुन के बीच मेरे सामने वाले जेब में झनझनाहट हुई तो मैंने मोबाइल निकाल ली। स्क्रीन पे अरबाज़ का नाम दिखा तो मैंने कॉल उठा लिया। कॉल उठाते ही सामने से आवाज़ आयी, "क्यों अमित ! निकाह में नहींं आओगे ? सारे माइकलाइट आ रहे हैं।"

मैंने हँसते हुए बोला, "मेरे बिना शादी नहीं करोगे क्या?"

उसने कहा , " हाँ नहीं करेंगे, तुम्हारे जैसे थोड़े ही हैं कि लड़की के चक्कर में दोस्ती भूल जाए ?"

मैंने थोड़ा रुककर बोला, "सबका प्यार मुक़म्मल नहीं होता। शादी हो रही, चुपचाप कर लो ! और सुनो कल बोरिंग रोड वाली चाय दुकान के पास मिलते हैं। "

उसने कहा, "तुम आओ तो? "

मैंने कॉल काटने से पहले बोला, " तुम अकेले आना भाई , बहुत सारी बातें करनी हैं।"


 बोरिंग रोड के पास वाली चाय दुकान शायद पटना की सबसे अच्छी चाय दुकान थी । मेरा ऐसा सोचने की वजह हमारी बहुत सारी यादों का जुड़ाव भी हो सकता हो , लेकिन वहां की भीड़ इस बात पर मुहर भी लगाती थी ।


हम तयशुदा वक़्त से आधे घंटे देरी से मिले और मिलते ही उसने गर्मजोशी से मुझे गले लगाया। चाय की गिलास हाथ में रखकर बातों का सिलसिला शुरू हुआ । 

मैंने कहा, " हमारी पिछली मुलाकात शायद 5 साल पहले हुई थी ।"

उसने कहा, " तुम ही व्यस्त हो गए हो । पहले कोटा और अब, अब तो बड़े लोग हो गए हो । कॉलेज जाते ही तुम भूल ही गए, ऐसे लगता है कि सारे ऑपरेशन तुम्हें ही करने पड़ते हैं !"


मैंने उसे बोला, " अरे यार ऑपरेशन छोड़ो , अभी तो रोज पास फेल होने के दरमियान कहीं खोए हुए हैं। उसने भी मुँह नाक सिकोड़ते हुए बोला, " भक्क ! तुम प्रतिभाशाली लड़के हो । सब कर लोगे। "

मैं मुस्कुराने लगा, फिर उसने पूछा, " तुम एनआरएस मेडिकल कॉलेज में हो ना? क्या हंगामा हुआ था और डॉक्टरों की पिटाई हुई हुई थी ? तुम्हें चोट तो नहींं आई थी उस वक्त? "


मैंने कहा, "हंगामा नहीं , आंदोलन हुआ था । "

और फिर मैं सरकारी नीति और शिक्षा व्यवस्था को कोसने लग गया। 

उसने बीच में बात बदल कर अपने होने वाली बेगम की तस्वीर दिखानी चाही। मैं मज़ाक में कुछ बोलने ही वाला था कि मेरा ध्यान सामने के बरगद पेड़ के पास खड़े एक लड़के पे पड़ी और मेरे मुँह से अपशब्द निकल पड़े। 


उसने बोला, "ये क्या है भाई? किसको गाली दे रहे हो ?"


मैंने इशारे से उस लड़के को दिखाया । उसके साथ एक लड़की भी थी जो स्कूटी पे बैठी थी और दोनों एक ही सिगरेट से कश लेकर बातें कर रहे थे।

 

अरबाज़ ने मुझे गाली दी और कहा, "अच्छी लड़की दिखी नहीं की तुम्हारी नियत खराब हो गयी । क्यों उस लड़के को गाली दे रहे ? बेचारा बात ही तो कर रहा है । "


मैंने कहा , "इस लड़के से मेरा गहरा नाता है। "


तब तक लड़की ने स्कूटी चालू की और लड़का पीछे बैठा , फिर दोनों आँखों से ओझल हो गए। 


मेरे दोस्त ने पूछा , "जानते थे तो मिले क्यों नहीं उससे , कम से कम लड़की से जान पहचान तो करा देता। कितनी खुबसूरत थी। "


मैंने कहा, "मैं जानता हूँ उसे , शायद वो मुझे नहीं जानता। "


अरबाज़ ने झुंझलाते हुए पूछा , "तो कौन है ये ? "


मैंने कहा, " समझ लो इस माइकल वाले को उस डी.ए.वी वाले ने इश्क़ की जंग में मात दे दी। "

अरबाज़ ने हँसते हुए कहा, "अच्छा! तो ये आपके रक़ीब हुए ?"

मैंने गुस्से वाली नज़र से उसे देखा तो उसने कहा, "इस बात को लेकर इतने संजीदा हो तो मुझे माफ़ करना ।"

उसके ऐसा कहते ही मेरी आँखों नम हो गयी और मैं आँखों को अपने दोस्त की नज़र से बचाने के लिए इधर उधर देखने लग गया। 

उसने मेरा सर पकड़ा और आँखों में आँखें डाल के बोला, "ये कैसे मुमकिन है ! तुम्हारे जैसा लड़का जिसने दोस्ती के अलावा किसी चीज को इतनी एहमियत नहींं दी और फिर भी कोई दोस्त तुम्हारे इतने करीब नहींं आ पाया जो तुम्हारे मन के चारों तरफ बनी दीवार के पार झाँक भी सके। लेकिन आज ये आँसू , यह बात बयां कर रहे हैं कि वो दीवार टूट चुकी है ।"


मैंने नम आँखों को पोछते हुए कहा, " दीवार सिर्फ टूटी नहींं यार। मेरे नाम, दिल, दिमाग, आत्मसम्मान, प्यार, जज्बात और दोस्ती के साथ ढहा दी गई। "


फिर हम दोनों पास वाले पार्क में बैठ गए जहां मैंने ना चाहते हुए भी अपने सारे जख्म-ओ-जज्बात के अफसाने को अपने दोस्त के सामने उढेल दिया । उसने बोला , "यह वही लड़की है ना जो तुम्हारी अच्छी दोस्त है ।"

मैंने हां में सर हिलाया तो उसने बोला, " पर तुमने तो बोला था कि तुम्हें उसमें कोई रुचि नहींं और उसका कोई साथी भी है ।"


मैंने कहा , "मैंने तुमसे कभी झूठ नहीं बोला। वो एक बंगाली लड़का है जो मेरे ही कॉलेज का था और वो उसके साथ थी और साथ खुश भी थी। वो बंगाली लड़का दिखने में अच्छा था, बहुत सारी भाषाएँ जानता था, नाचने का हुनर था, नाटक-नौटंकी करता था और पढ़ाई में भी अच्छा था। उस लड़के में वो सब था जो लड़की चाहती थी और मैं तो बेवजह ताव में रहने वाला साधारण लड़का था जो उस वक़्त इसे दोस्त के अलावा कुछ नहीं समझता था। लेकिन इस लड़के के कारण हमारी दोस्ती में कभी खलल नहीं पड़ी, न कभी कोई हमारे बीच आया और उस समय तक इतनी गहरी हो चुकी थी दोस्ती की वो लड़का भी हमारे बीच नहीं आ सकता था। 

पर वो लड़का अपने ढ़ेर सारे कामों में व्यस्त रहता और वक़्त की कमी की वजह से रिश्ता खत्म हो गया। "


अरबाज़ ने बीच में टोका मुझे, " कुसुम नाम है न तुम्हारी दोस्त का ?"

मैंने हाँ में सर हिलाया तो उसने फिर पूछा, " अब इस लड़के के साथ रिश्ता खत्म होने के बाद तुम दोनों का क्या हुआ?"


मैंने कहा, "उस लड़के के जाने से वो बिखरने लगी और उस वक़्त जो शायद कोई भी दोस्त करता , मैंने भी वही किया। उसका साथ दिया और उसके साथ रहा। "


मेरे दोस्त ने पानी की बोतल मेरी तरफ बढ़ायी और पूछा, "फिर क्या हुआ?"

मैंने कहा , "फिर हमने वक़्त का सफर कुछ वक़्त के लिए साथ तय किया। सुबह की पहली कक्षा में आँखों के विभाग के शिक्षक आते और मेरी आंख कुसुम के कॉल से खुलती थी । उसके बाद शायद रात के 2:00 बजे तक हम साथ ही होते थे । उसके हॉस्टल जाने पर कॉल और रोज की बातें - हम दो खुद को समझदार समझने वाले लोग दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफी करने लग गए थे । कॉलेज का हर विभाग, मंदिर, ग्राउंड, हम दोनों के हॉस्टल के बीच के रास्ते, पेड़, तालाब और हम मिलकर इस दोस्ती को रोज अलग ऊचाइयों पे ले जा रहे थे । 250 लोगों की क्लास में हम दोनों अपनी अलग सी कहानी रच रहे थे । रविवार को हम दोनों बाहर जाने से बेहतर कॉलेज के तालाब के सामने साथ बैठना पसंद करते थे । उसके साथ होने पर मुझे ऐसा लगता है कि मुझे किसी चीज की जरूरत ही ना हो । उसी साल की दिवाली की छुट्टी में जब वह घर गई तो उसके आने में बहुत वक्त लग गया । शायद 20 दिन छुट्टी खत्म होने के बाद भी वह घर पर ही रही। इसी बीच मेरी बात एक लड़की जो मेरे कॉलेज की ही थी उससे होने लग गई । "


अरबाज़ ने टोका, " यही थी न स्वाति जिसने तुमसे अपने इश्क़ का इज़हार किया था। "

मैंने कहा, " हाँ । स्वाति ने अपनी बात मैसेज में कही थी और मैंने आदतन स्क्रीनशॉट लेकर कुसुम को भेज दिया।"

उस वक़्त उसने मुझे कुछ नहीं बोला और मैंने उसकी नाराज़गी को उसकी व्यस्तता समझ , स्वाति में मशगूल रहा।

फिर उसके कॉलेज आने के 3 दिन पहले उसने कॉल किया और सब बदल गया।"

अरबाज़ ने हैरत से पूछा , "ऐसी क्या बात हो गयी?"

मैंने कहा, "उसने मुझसे कम बात करने की, व्यस्त रहने की शिकायत की तो पता नहींं क्यों पर मैंने उसे ही डांट दिया तो उसने गुस्से में कॉल काट दिया । उसने पहली बार मुझे व्हाट्सएप से ब्लॉक किया था । मुझे नहींं पता कि लोगों की जान जाती है तो कैसा महसूस होता है पर शायद ऐसा ही होता होगा जैसा मुझे उस वक्त लग रहा था। 2 दिन बाद उसने वापस कॉल किया और फिर हम दोनों के जज्बात उमड़ पड़े । वो रोने लगी और उसने कहा, 'ऐसा लग रहा था जैसे तुम मुझसे छूट रहे थे। मेरे पास तुम्हारे अलावा कोई नहींं है और ऐसे में तुम दूसरी लड़कियों से बात करते रहो।'

इस बात पर मैं हंसने लगा और बोला, 'तुम्हारी जगह कोई कभी नहींं ले सकता, लेकिन कभी तो ऐसा वक्त आएगा ना जब तुम्हें कोई पसंद आएगा और फिर मैं क्या करूंगा । '


उसने कहा, 'मुझे कभी कोई पसंद नहींं आएगा और तुमने अगर उस लड़की से बात बंद नहींं की तो मुझसे दुबारा बात मत करना ।'

मैंने उससे बस इतना कहा कि तुम नहींं तो कोई नहींं और उसके कॉल रखते ही मैंने बिना सोचे स्वाति को हर जगह से ब्लॉक कर दिया । लेकिन उसके बाद उसके लिए मेरे जज्बात बदल चुके थे । अब मेरी नजरों में हम बस दोस्त नहींं रह गए थे ।

अगली सुबह उसे कोलकाता वापस आना था । सियालदह स्टेशन जो हमारे कॉलेज के पास में ही था वहां मैं भागते हुए पहुंचा । 7:00 बजे सुबह उठते ही मैंने जैसे उस दिन किसी और को देखा ही ना हो । और फिर उस दिन मुझे ट्रेन से उतरती दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की दिखी । मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैंने इसे पहली बार देखा हो और मुझे देखते ही प्यार हो गया हो । आते ही वो मुझसे लिपट गई और मुझे याद नहींं हम कितनी देर ऐसे रहे, लेकिन यह बात मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि हर एक बीतते पल के साथ मेरा प्यार बढ़ता चला गया । अलग होने के बाद भी हम इतने करीब तो थे ही उसकी पतली नाक और मेरे चपटी नाक के बीच दूरी बची ही नहींं थी । धड़कनों की आवाज ऐसे महसूस हो रही थी जैसे उस भीड़ में बस हम दोनों बचे हो । लोगों के पास होने के आभास बाद हम वहां से वापस कॉलेज चले गए । 

आने वाले कुछ महीनों में हम बेहद करीब आ गए लेकिन हमने ना कभी रिश्ते पर चर्चा की, ना ही कभी बाहर जाने को अंग्रेजी वाले 'डेट' का नाम दिया ।"


अरबाज़ ने बीच में टोका, " फिर तुम दोनों के बीच यह पटना वाला लड़का कैसे आ गया । "

मैंने अब हंसते हुए बोला, " यार जिंदगी में जब सामने वाला शायर हो , लड़की का पड़ोसी हो, बचपन का दोस्त हो , तो चुपचाप हार मान लेनी चाहिए । मैंने जिंदगी में दो ही उपलब्धियां हासिल की थी एक मेडिकल कॉलेज में मेरा दाखिला और दूसरा कुसुम से मेरी दोस्ती । वह लड़का तो उसका बचपन से दोस्त था और इन सब के साथ वह मेडिकल कॉलेज में भी था ।

कुसुम की बात शायद ही मैंने कभी टाली हो लेकिन जब उसने मुझे इस लड़के से मिलने के लिए मेरे साथ पटना जाने की जिद की तो मैंने मना कर दिया और नाराजगी भी जाहिर की । वह पटना तो नहींं गयी लेकिन उसने मुझसे बात बंद कर कर दी । एक हफ्ते बाद मैंने उसे उसी लड़के के साथ मेरे कॉलेज के उसी तालाब के पास बैठे देखा जहां हमने साथ बैठकर जिंदगी की हर बात की थी। मुझे लगा जैसे मुझे मेरे ही घर से बेदखल कर दिया गया हो और मैं तमाशा देखता रह गया । मैं परेशान था और ऐसा नहींं था कि मैं पहली बार परेशान हुआ था, लेकिन मेरे साथ हर बार मेरी दोस्त होती थी जो अभी नहीं थी। मैंने बात करने की सोची लेकिन उसके व्हाट्सएप के स्टेटस में उन दोनों की फोटो जिस पर एक कविता जो इस शायर लड़के ने ही लिखी थी मुझे दिखी और फिर मैंने गुस्से में बात ही नहींं की ।

एक हफ्ते बाद उसका कॉल आया तो हमने घंटों बात की लेकिन ना मैं शिकायत कर पाया और ना हमारे रिश्ते के बीच की उलझन सुलझ पायी । मेरे मन में बहुत सारी बातें थी जिसे मैं अपने दोस्त को ही नहींं कह पा रहा था । फिर मैंने उसे खत लिखा - 

'प्रिय कुसुम 

मुझे लिखना तो नहींं आता लेकिन मेरे पास मेरी बात कहने के लिए कोई जरिया रह ही नहींं गया था । मुझे प्यार करना नहींं आता, ना ही मैं कोई शायर हूँ , ना कोई गिटार बजाने वाला, ना तुम्हारे पड़ोस का कोई दोस्त, मुझ जैसे साधारण से दिखने वाले शख्स को तुम्हारे जैसी लड़की से इश्क करने की इजाजत मिलनी ही नहींं चाहिए थी । लेकिन अफसोस इसी बात की है कि मुझे तुमने ही बेशुमार मोहब्बत करने की इजाजत दे रखी है । जब मैं तुम्हें पानी पीते देखता हूँ तो तुम्हारी गर्दन से मुझे प्यार हो जाता है , तुम्हें लीपापोती करने की आदत नहींं लेकिन जब तुम्हारे होठों में बस हल्की गुलाबी रंग चढ़ती है तो तुम्हारे होठों से प्यार हो जाता है, मेरे चेहरे से टकराने वाले बालों से प्यार हो जाता है, गुस्से में देखती हो तो तुम्हारी आंखों से प्यार हो जाता है, हंसने पर तुम्हारी नाक से और जब बेहद करीब हो तो तुम्हारी साँसों से मुझे प्यार हो जाता है । मुझे दुख इस बात का है कि मैं दोस्ती और प्यार के बीच अंतर को मिटाते मिटाते तुम्हें ही अपने ज़ेहन से मिटाने लग गया हूँ । 

ये दोस्ती तो खूबसूरत झील सी है जिसे हज़ारों सालों बाद एक दिन घने जंगल में बदल जाना है - इस बात का इल्म है मुझे !! लेकिन इसे कचड़े से भरकर मरने के लिए नहींं छोड़ना चाहिए था। फिर हम दोनों को किसी पर्यावरण के हितैषी की तरह रोज़ इसे बचाने की कोशिश करते हुए देखना बहुत तकलीफ देता है। मैंने कहा था कि तुम्हे बेशुमार प्यार करने वाला चाहिए , शायद मैं नहीं कर पाया, या शायद दोस्ती नहीं निभा पाया । और कभी कभी मैं खुद को बदसूरत लगने लगता हूँ, सोचता हूँ काश तुम्हे पसंद आ पाता, या शायद ज्यादा सोचने लगा हूँ।  

लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं, जो है सो है!

अच्छी बात ये है कि अभी वक़्त है हमारे पास और मुझे उम्मीद है कि झील पहले से अधिक खूबसूरत दिखेगी।'

उसका जवाब आया, 'इसके बाद मैं कुछ कह नहींं सकती । बस इतना बोलूंगी कि तुम्हारे बिना मुझे कुछ नहींं चाहिए । मैं तुम्हें खो नहींं सकती। जानते हो अमित, एक दिन ये सब खत्म हो जाएगा और उस शाम भी मुझे हर शाम की तरह तुम्हारी ही तलाश रहेगी ।' "

अरबाज़ ने झुंझलाते हुए पूछा, " इस बात का क्या मतलब ? "

मैंने मुस्कुराने लगा और थोड़ी देर बाद बोला , "ये बस मैं समझ सकता हूँ लेकिन तुम्हें समझा नहीं सकता । " 

अरबाज़ ने मुझे गले लगा लिया और फिर बोला, "चलो चाय पीते हैं। "



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