आखिर क्यों
आखिर क्यों
"आज 15 साल का विश्वास तुमने तोड़ दिया। कितना गर्व था मुझे अपने पति पर। दुनिया लाख कहे पर मैंने हमेशा अपने मन की सुनी। इस विश्वास में जीती आई थी कि जो सामने देख रही हूँ बस वही सच है....।"
"सौम्या गलती हो गई माफ कर दो। यहीं खत्म करो बात को!" रोहन ने कुछ बहकते अंदाज में कहा।
"माफ कर दूँ, कैसे! कैसे अपने अहंकार को चोट पहुँचा दूँ। जो ठेस तुमने मेरे दिल को पहुँचाई है उस गुनाह को कैसे माफ कर दूँ।"
"देखो हल्ला मत करो। बच्चों के कान तक बात जाएगी। शांति से बात को यहीं खत्म करो। क्यों फिजूल में बात का बतंगड़ बना रही हो!"
"मतलब तुम्हें गलत करके भी शर्म नहीं आ रही। कोई अफसोस नहीं। उलटा तुम ये चाहते हो कि आज दुस्साहस कर, तुमने नशे की हालत में, घर आने की जो हिम्मत की, मेरा सामना करने की हिम्मत की, मैं खुद के स्वाभिमान को छोड़ तुम्हें माफ कर दूँ! बच्चों के कान में बात ना जाए इस डर से तुम्हारी गलती को ढक दूँ।"
"क्या गलती! दोस्तों के बीच बैठ इतने सालों में कभी एक बार....तुम तो ऐसे कह रही जो जैसे मैं रोज इस तरह से घर आता हूँ। यकीन करो मेरा, मुझे पता भी नहीं था धोखे में....।"
"बस करो रोहन....बस करो! झूठ पर झूठ बोले जा रहे हो। अगर तुम सच में इतने मासूम होते तो मेरे मना करने के बाद बाहर जाते ही नहीं। क्या तुम नहीं जानते थे तुम कहाँ जा रहे हो? जिन दोस्तों के साथ तुम जा रहे हो कैसे हैं वो लोग?
सबके बीच अपनी इज्जत बना कर, घर को समेट, आपके और बच्चों के लिए जीती आई हूँ। बहुत बार ताना सुना था मैंने आपके पीने की आदत का लेकिन इतने सालों में, ना कभी आपने मौका दिया और ना कभी मुझे शिकायत हुई। मुझे अटूट विश्वास था आप पर। इतना विश्वास की कोई कुछ कहे तो मैं आगे खड़ी हो जाऊँ। आज बच्चों की इस नाजुक उम्र में, जवान बच्चों के आगे आते आपको शर्म नहीं आई। छिः घृणा हो रही है मुझे आपसे।"
अब रोहन की याचिका की आवाज ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया, "चिल्लाओ सौम्या और जोर से चिल्लाओ। बच्चों को बताना चाहती हो ना तुम्हारा बाप ऐसा है। उनकी नजरों से मुझे गिराना चाहती हो ना! तो चिल्लाओ।"
सौम्या कराहती आवाज़ में बोली, "ये मत सोचना मैं डर जाऊँगी। ये मेरे बच्चों के बनने-बिगड़ने की उम्र है। इस उम्र में तुम्हारी यह नई शुरुआत मैं कभी बर्दाश्त नहीं करूंँगी। मुझे कमजोर समझने की भूल मत करना।"
देखा तो बिटिया रो रही थी, "माँ मेरे पापा ऐसे नहीं है किसी ने गलती से पापा को....।" लेकिन उसे भी धीरे-धीरे पिता के बोलने के लहज़े को देख नफरत होने लगी, "दूर रहो आप मुझसे, आप मेरे पापा नहीं हो। मैं तो सबके बीच में घमंड से अपने पापा के लिए कहती थी।" झगड़ा बढ़ने लगा तो बेटा माँ का सहारा बन खड़ा हो गया।
रोहन आपे में न था। उसे देख बिटिया सहम रही थी। रोते-रोते बोली, "माँ सब सुनेंगे तो क्या कहेंगे ऋतु के पापा....!"
सौम्या बच्चों को लेकर कमरे में चली गई। प्यार से दोनों के सिर में हाथ सहलाते हुए बोली, "गलती कभी भी छोटी या बड़ी नहीं होती। गलती सिर्फ गलती होती है। जो आज तुम्हारे पापा ने की है। मैं चाहती तो इस घटना को यहीं दबा सकती थी। परिवार के लोगों की और आसपास में रहने वाले लोगों का सोच, चुप रह सकती थी पर वह गलती को खत्म करना नहीं बढ़ावा देना होता। आज तुम्हारे पापा दोराहे पर खड़े हैं या तो अनुभव से आगे बढ़ेंगे ताकि गलती का अंत हो या आज यहाँ से एक नई गलती का आरंभ होगा। जो भी हो दोनों रास्तों में से उन्हें आज एक रास्ता तय करना होगा।"
बच्चों के सोने के बाद तड़पते दिल से एक ही आवाज़ आ रही थी ,"हार गई तू सौम्या....हार गई। छोटे से घर को भी ना समेट पाई।" चूक कहाँ हुई वो भी नहीं जानती थी। सोचती मेरा गर्व था मेरा पति। चाहे दुनिया ने कुछ कहा मन से डरने के बाद भी मैंने हमेशा इन पर विश्वास रखा। जो बातें आज तक मैं सिर्फ दूसरों के मुंह से सुनती आई थी सबका विरोध कर अपनी एक अलग जगह बनाई। आज उसी डर से जब सामना हुआ तो बिखर गई।
अगले दिन घर में शांति थी।
रोहन सामान्य हो बड़ी सहजता से सौम्या से बात करने लगा। जैसे की कल कुछ हुआ ही न हो।
सासू माँ ने बीच में ही व्यंग्यात्मक लहज़े में कहा, "औरत को शालीन होना चाहिए। अपने घर की बात जितना दबे उतना अच्छा है। कौन औरत होगी जो अपने ही घर का तमाशा बनाएगी। आज इतने सालों में पहली दफा ऐसा हुआ और माफी माँग तो रहा है।"
सौम्या सबकी बातें सुन आत्मविश्वास के साथ खड़ी हो बोली, "मुझसे बात करने से पहले आप एक रास्ता चुन लीजिए पहला वह जहाँ 'मित्रों की टोली' है ।जहाँ जाकर आप जीवन का आनंद उठा रहे थे ऐसा नहीं कि वहाँ कुछ नहीं। वहाँ से आपको इस हालत में सहारा दे घर छोड़ने वाले बहुत से लोग मिलेंगे।
दूसरा रास्ता मेरे घर का है। जहांँ आपके सहारे से जीने वाले लोग है। ये रास्ता थोड़ा कठिन है। यहाँ आनंद नहीं है यहाँ सिर्फ त्याग है। कभी बच्चों की खुशी के लिए, तो कभी पत्नी के प्रेम के लिए। फैसला कर लीजिए आप कौन सा रास्ता चुनना चाहते हैं? मैं नहीं चाहती आज के बाद मेरे बच्चे अपने पिता का नया रूप देखें। इसे चाहे तो मेरा अहंकार मान लीजिए, ममता या पत्नी-धर्म।" कह सौम्या कमरे में चल दी।
तमाम दुख, तकलीफ ,दर्द उसके अंदर था। आज उसे किसी के साथ की जरूरत न थी। अंदर जो अंतर्द्वंद्व चल रहा था उसका इलाज कुछ नहीं था। वो पति जिस पर सिर्फ प्रेम और विश्वास था आज उससे एक घृणा हो रही थी।
