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Megha Rathi

Romance

5.0  

Megha Rathi

Romance

आज फिर वही मौसम है

आज फिर वही मौसम है

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सुनो...आज फिर बरसात का मौसम है। वही काले बादलों के साये और रिमझिम पड़ती फुहार। याद है न तुमको...उस दिन भी बिल्कुल यही मौसम था। हवा से बात कर रहीं थीं मेरी जुल्फ़े मगर तुमने हटाने की जरूरत नहीं समझी। मैं जानती हूं, तुम्हें फुरसत कहाँ थी! तुम्हारी नजरें मुझे कुछ इस तरह देख रही थीं जैसे तुम मेरे हर अंदाज़ को अपनी आंखों में हमेशा के लिए कैद कर लेना चाहते थे जैसे पता नही दोबारा ये पल मिले न मिलें।

होंठ बार- बार लरजते थे मगर बात जुबाँ तक आकर भी रुक रही थी। सिर्फ तुम्हारे ही नहीं मेरे साथ भी तो यही हो रहा था मगर फर्क था, तुम जानते थे कि तुम्हें क्या कहना है और मैं समझ नहीं पा रही थी कि तुम्हारे उन अनकहे जज्बातों के लिए मुझे क्या कहना चाहिए।

बहुत कोशिश कर रही थी कि तुम को न देखूं, मगर निगाहें न जाने किस चुम्बक से बढ़ गईं थी जो तुम्हारे चेहरे से हटने का नाम नहीं ले रही थीं।

कुछ मौसम का सुरूर था, या फिर तुम्हारा अंदाज़, हाँ अब समझ चूकि हूँ ..ये तुम्हारा अंदाज़ ही है, जब तुम कुछ कह नहीं पाते हो तो गाने गुनगुना कर अपने अहसास को सामने वाले को समझाने की कोशिश करते हो। उस दिन भी तो यही कर रहे थे तुम। बस एक ही गाना था जिसे उस दो घण्टे के समय में तुम गाते रहे थे।

बातें भी की थीं हमने मगर निगाहों से। तुम्हें याद है वो पल जब बारिश अचानक तेज़ हो गई थी और तुम मुझे लेकर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए थे। मुझे नहीं पता कि मैंने पर्स से मोबाइल क्यों निकालना चाहा था। तुमने रोक दिया था मुझे पर्स खोलने से। वो पहला स्पर्श था तुम्हारा। मेरी कलाई को थामे तुम एकटक मुझे देख रहे थे। तुम्हारी आँखों में चाहत बारिश के पानी के साथ ही बरस रही थी और मुझे भिगोती जा रही थी फिर न जाने कैसा भावनाओं का सैलाब आया कि तुम मेरी तरफ कुछ कहने के लिए झुके थे। मैं बाहर से संयत थी ,मगर अंदर से घबरा गई थी। क्या तुम्हारे इस सैलाब को संभाल पाऊँगी मैं!

अचानक किसी गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ से मैं और तुम दोनों वास्तविकता के धरातल पर आ गए। बारिश फिर से तन- मन को लुभाती फुहारों में बदल चुकी थी। तुमने मुझे चलने का इशारा किया और मैं तुम्हारे साथ आगे बढ़ गई... इतना आगे कि अब जहां जाती हूँ वहां तुम मेरे साथ होते हो मेरे हमकदम बन कर। आखिर उस झम झम बरसते सावन ने ही तो हमें एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बढ़ने के लिए कहा था। याद है न तुमको सब? जानती हूं मेरी तरह तुम भी आज इस मौसम और बरसते पानी को देखकर यही सब याद कर रहे हो तभी तो गुनगुना रहे हो फिर से वही गीत..." हां तुम बिल्कुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था।"


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