Shubhra Varshney

Abstract

4  

Shubhra Varshney

Abstract

आइडेंटिटी

आइडेंटिटी

6 mins
110




तेज दर्द से उसका सर फटा जा रहा था। हिलने की उसकी सारी कोशिश बेकार जा रही थी , शरीर की सारी शक्ति जैसे समाप्त हो चुकी थी।आंख खोलकर देखने पर, अपने हाथ में लगे कैनुला और चढ़ती ड्रिप से वह समझ चुकी थी कि वह अस्पताल में थी।उसकी आंखें खुलती देख सामने काउच पर बैठी महिला ने तेजी से उठ कर उसके हाथों के अपने हाथों में ले लिया।और हाथ पकड़े पकड़े पीछे मुड़कर तेजी से चिल्ला उठी, "महेश जूही ने आंखें खोल दीं।"

अपने सामने एक अनजान महिला को देखकर उस लड़की जिसे वह महिला जूही कह रही थी उसने अपने हाथ तेजी से वापस खींच लिए।उसको हाथ तेजी से खींचते देख वह महिला परेशान हो बोल उठी , "क्या हुआ जूही दर्द ज्यादा हो रहा है?"

कौन है यह ?...और क्यों मुझे जूही कह रही है? यह सोचते हुए लड़की का सर का दर्द और बढ़ गया।उसने घबरा कर आंखें बंद कर ली तभी रूम में आए डॉक्टर ने कहा ,"आप लोग इसे थोड़ी देर आराम करने दीजिए और मुझसे आकर मेरे केबिन में मिलिए।


एक भीषण कार एक्सीडेंट के बाद उस लड़की को अस्पताल लाया गया था। लाने वाले महिला पुरुष स्वयं को उस लड़की का माता-पिता बता रहे थे।एक्सीडेंट के आज पांचवे दिन उस लड़की ने अपनी आंखें खोलीं थीं।

"सिर पर भयंकर चोट लगने के कारण आपकी बेटी को 'एमनेसिया' 'शार्ट मेमोरी लाॅस' हो गया है।"

केबिन में डॉक्टर के कहने पर लड़की की मां रीता ने जब आश्चर्य से नजर उठाई तब डॉक्टर ने उन्हें विस्तार से समझाया," "अंदरूनी चोट गहरी होने के कारण आपकी बेटी की याददाश्त चली गई है।"

साथ में बैठे उस लड़की के पिता महेश ने परेशान हो जब डॉक्टर से पूछा, "इसका इलाज कैसे होगा? हमारी बेटी कब तक सही हो पाएगी?"

"आप लोगों को थोड़ा पेशंस से काम लेना होगा अभी तो उसे हम अस्पताल मेंअन्डर ऑब्जरवेशन रखेंगे देखते हैं धीरे-धीरे जब तक दिमागी सूजन कम नहीं हो जाती तब तक कुछ नहीं कह सकते।"

डॉक्टर से बात करके रीता व महेश बहुत परेशान हो गए थे उन्हें उम्मीद थी उनकी जूही जल्दी ही ठीक हो जाएगी।अंदरूनी चोटों के साथ-साथ जूही को बाहरी चोटे भी आई थी जिस वजह से उसे पूरे एक महीने तक अस्पताल में ही रहना पड़ा।

इस बीच में रीता की प्यार से समझ चुकी थी कि यह औरत उसकी मां थी लेकिन उसे अपने अस्तित्व को पहचानने में बड़ी कोशिश करनी पड़ रही थी।लाख चाह कर भी उसे कुछ याद नहीं आ रहा था।

एक माह बाद वह डिस्चार्ज होकर रीता और महेश के साथ उनके घर आ चुकी थी।रीता की पूरी कोशिशों से वह बहुत तेजी से स्वास्थ्य लाभ कर रही थी।जैसे-जैसे वे ठीक होती जा रही थी उसकी धुंधली स्मृतियां उसे अतीत के गलियारों में सैर करा रहीं थीं।उसमें उसे अपनी मां की धुंधली छवि दिखती लेकिन वह रीता नहीं होती।उसका अस्तित्व जूही का किरदार नहीं स्वीकार कर पा रहा था।

उसे वहां कोई कमी नहीं थी और होती भी कैसे वह भव्य घर था ही हर सुख सुविधा से संपन्न।

उसका स्वयं का कमरा भी बहुत शानदार था लेकिन उसे बड़ा आश्चर्य था उस कमरे में उसकी बचपन की तो तस्वीरें थी लेकिन वह अवस्था जिस पर मैं इस समय थी उसकी तस्वीरें वहां नदारद थीं।रीता उसे अक्सर उसके बचपन के किस्से बताया करती लेकिन वह बातें उसकी स्मृति में कहीं भी नहीं थीं।

एक दिन शाम को बैठे-बैठे उसे जैसे झटका सा लगा उसे कुछ याद सा आ रहा था कि वह कार लेकर कहीं जा रही थी और अचानक से सामने ट्रक से टकरा गई थी।कहां जा रही थी वह..... शायद कॉलेज।

ऐसा कुछ याद आते ही मैं तेजी से रीता के पास जाकर बोली," मेरा एडमिशन तो कॉलेज में है शायद... मैं कौन से कॉलेज में पढ़ती हूं।"

उसके किए एकदम से प्रश्न से रीता सकपका गई फिर एकदम से संभल कर बोली जूही तुम बाहर विदेश में पढ़ती हो छुट्टियों में घर आई थी एक शाम को तुम्हारा कार एक्सीडेंट हो गया था।"

बेमन से जूही ने रीता की बात मान ली।

वह रीता से बाहर चलने को कहती तोरी तो यह कहकर टाल देती थी कि ,"डॉक्टर ने अभी तुम्हें कहीं ले जाने को मना करा है तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है।"एक दिन जब शाम को उसने सो कर उठ कर देखा कि बाहर लॉबी में पुलिस आई हुई थी।वह बाहर जाना चाहती थी पर उनकी घरेलू मेड अनीता ने उसे बाहर जाने से मना करा कि उसका जाना ठीक ना होगा।जब तक वह बाहर आती तब तक पुलिस जा चुकी थी।

महेश ने जूही के पूछने पर बताया पुलिस शायद किसी की इन्वेस्टीगेशन करने आई थी।जूही को अन मना बैठा देख महेश ने उसे अपनी लाइब्रेरी में से कुछ किताब लेकर पढ़ने को कहा।

अब जूही एक हॉल नुमा कमरे , जो कि उनकी घरेलू लाइब्रेरी थी, मे थी।सामने रखने लगी किताबों से उसकी निगाह हटकर एक विशालकाय कैबिनेट पर पड़ी।पास जाकर उसने उस कैबिनेट का ड्रॉयर खोला।एक लड़की के तमाम फोटो से वह भरा था उत्सुकता वर्ष है उसे लगातार देखती चली गई और तभी उसके हाथ एक कागज का पर्चा आया।उसकी आंखें आश्चर्य से फैल गई।कागज का पर्चा वहीं छोड़ वह लड़खड़ाते कदमों से हॉल से बाहर आ गई।

बाहर लॉबी में महेश व रीता नहीं थे शायद वह किसी मीटिंग में गए थे ।सबकी नजरें बचाती वह तेजी से उस विशालकाय घर से बाहर निकल कर अब सड़क पर थी।वह बेतहाशा तब तक भागती रही जब तक उसे सामने से कार आती हुई ना दिखी।पसीने से तरबतर और उसे हाफंते देख कार में बैठी बुजुर्ग दंपत्ति को उस पर दया आ गई और उसके कहने पर उन्होंने उसे पास के पुलिस स्टेशन पर छोड़ दिया।अब वह पुलिस स्टेशन में थी।

थोड़ी देर में ही वहां इस्पेक्टर से मिलकर उसे समझ में आ गया था कि वह पिछले डेढ़ माह से गुमशुदा थी और उसके असली माता-पिता उसकी तलाश में थें।पुलिस की सूचना देने पर अब उसके माता-पिता पुलिस स्टेशन में उसे देख कर खुशी से रो रहे थे।

उसने धुंधली स्मृतियों में देखा चेहरा बिल्कुल उस महिला से पाया जो समय उसे लेने आई थी वह समझ गई यही उसकी मां थी।पुलिस को बताए विवरण के अनुसार उसके नकली माता पिता रीता व महेश को धोखाधड़ी के चलते गिरफ्तार कर लिया गया था।पर गीतिका के कहने पर दोनों को जल्द छोड़ दिया गया।

हां वह गीतिका थी जो कॉलेज से लौटते हुए अपनी कार ट्रक में दे बैठी थी।मौके पर पहुंची महेश और रीता ने उसे वहां से अस्पताल में भर्ती करा दिया था और उसे अपनी बेटी जूही बताया था।

धीरे-धीरे स्वास्थ्य लाभ करती उसकी स्मृति वापस आ रही थी।

एक दिन शाम को जब अचानक ही उसकी मां ने उससे पूछा कि उसने कैसे जाना कि वह जूही नहीं थी।गीतिका ने गहरी सांस ली और कहा," समझ में तो मुझे शुरू से ही नहीं आ रहा था पर मेरा शक यकीन में तब बदला जब मैंने उनके कैबिनेट के ड्रॉयर में रखे उनकी बेटी जूही के तमाम फोटोस के साथ उसका डैथ सर्टिफिकेट भी देखा था।"

रीता व महेश अपनी मरी हुई बेटी जूही का स्थान गीतिका को देना चाहते थे।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract