आधा चाँद
आधा चाँद
बहुत दिनों के बाद मेरी ऑफिस की एक कलीग से मिलने का मौका मिला।
"आइए,घर में चल कर बातें करते है।" मेरे कहने पर कुछ नानुकुर के बाद वह मेरे घर आयी।चाय की चुस्कीयों के बीच हमारी बातें शुरू हो गयी।
"और बताओं,आजकल घर में कौन कौन है?" मेरे सवाल पर वह हँसते हुए कहने लगी ,"अरे, पूछो मत।आजकल घर में कुछ ज्यादा ही लोग रह रहे है।" मैंंने कहा,"गांव से कोई आया लगता है शायद।" मेरी बात पर वह कहने लगी,"अरे नही,आजकल मैं कई सारी दीवारों,एक छत और बहुत सी खिड़कियों के साथ रहती हुँ।और हमारा साथ देती है घर की रोजमर्रा की कई सारी चीजें।जिंदगी बड़े ही मजे से गुजर रही है।जिंदगी में हमें और क्या चाहिए?"
मेरी हँसी को जैसे ब्रेक लग गया।उसने हँसते हँसते बड़ी ही खूबसूरती से अपनी तन्हाई का जिक्र कर दिया।
मेरी इस ख़ामोशी को नजरों से तौलते हुए फिर वह कहने लगी,"बचपन में मै हमेशा कहा करती थी की बड़ी होने के बाद मेरा बड़ा घर होगा।सिर्फ मेरा ही एक बड़ा सा कमरा होगा और मै बड़े से म्यूजिक सिस्टम में गाने सुना करूँगी।और आज तुम देख लो,सारी बातें सच हो गयी है।"
मैं खामोशी से उसकी सारी बातें सुनती रही ठीक वैसे ही जैसे उसके घर की दीवारें,छत और खिड़कियाँ उसकी बातें सुनती रहती है।
आज मुझे महसूस हुआ कि हमारी सब की जिंदगी बिल्कुल पूर्णमासी के चाँद की तरह होती है।सारी दुनिया को चमकता हुआ आधा चाँद ही नज़र आता है।दूसरा आधा चाँद उसी वक़्त घुप अँधेरे में छुपकर रहता बिल्कुल खामोश और बेआवाज ....
