Kunda Shamkuwar

Abstract Others Tragedy

4.5  

Kunda Shamkuwar

Abstract Others Tragedy

आधा चाँद

आधा चाँद

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बहुत दिनों के बाद मेरी ऑफिस की एक कलीग से मिलने का मौका मिला।

"आइए,घर में चल कर बातें करते है।" मेरे कहने पर कुछ नानुकुर के बाद वह मेरे घर आयी।चाय की चुस्कीयों के बीच हमारी बातें शुरू हो गयी। 

"और बताओं,आजकल घर में कौन कौन है?" मेरे इस सवाल पर वह हँसते हुए कहने लगी, "अरे, पूछो मत।आजकल घर में कुछ ज्यादा ही लोग रह रहे है।" मेरे कहने पर की गाँव से कोई आया लगता है शायद वह कहने लगी,"अरे नही,आजकल मैं मेरे घर की बहुत सारी दीवारों, उनकी छतों और बहुत सी खिड़कियों के साथ रहती हुँ और मेरा साथ देती है घर की रोजमर्रा की कई सारी चीजें।जिंदगी बड़े ही मज़े से गुजर रही है।जिंदगी में हमें और क्या चाहिए?"

मेरी हँसी को जैसे ब्रेक लग गया।उसने  हँसते हुए कितनी खूबसूरती से अपनी तन्हाई का जिक्र कर दिया...... 

मेरी ख़ामोशी को नजरों से तौलते हुए फिर वह कहने लगी,"बचपन में मै हमेशा कहा करती थी की बड़ी होने के बाद मेरा बड़ा घर होगा।सिर्फ मेरा ही एक बड़ा सा कमरा होगा और मै बड़े से म्यूजिक सिस्टम में गाने सुना करूँगी।और आज तुम देख लो,सारी बातें सच हो गयी है।"

मैं खामोशी से उसकी सारी बातें सुनती रही ठीक वैसे ही जैसे उस घर की दीवारें,छत और खिड़कियाँ उसकी बातें सुनती रहती है।

आज मुझे महसूस हुआ कि हमारी सब की जिंदगी बिल्कुल पूर्णमासी के चाँद की तरह होती है। सारी दुनिया को वह चमकता हुआ आधा चाँद ही नज़र आता है। और ठीक उसी वक़्त दूसरे हिस्से वाला आधा चाँद घुप अँधेरे में छुपकर रहता बिल्कुल खामोश और बेआवाज ....


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