1% ऑफ़ समथिंग
1% ऑफ़ समथिंग
1% के कई अर्थ है और है कितना महत्वपूर्ण ये आप खुद ही देख लें।
पहला कदम या फिर आखरी कदम दोनों ही महत्वपूर्ण है। पहले कदम के बिना किसी मंजिल की शुरुवात नहीं हो सकती और आखरी का तो लक्ष्य पर पहुंचने पर ही पता चलता है।
ठीक वैसे ही है 1%, ये एक शुरुवात के लिये भी हो सकता है। या फिर पुर्णता याने 100% के लिए आखरी 1% भी, जिसके बिना पुर्णता का महत्व नही रह जाता। 99% कभी पुर्ण या पर्फेक्ट नही होता।इसे हम अगर इस तरह देखे तो अच्छे से समझ आएगा।
किसी रेस मे भाग लेना है, कौनसी रेस मे और हमारा लक्षय क्या होगा वो तय करना होगा हमारा पहला कदम याने जीरो से आगे 1%, ये उतना ही महत्वपूर्ण है, क्युंकि गंतव्य तक पहुंचने के लिए शुरुआत करना भी उतना ही जरुरी है। मान लो हमारा लक्ष्य है वो रेस जीतना, जीतते है तो 100% पुर्ण होंगे। किसी भी वजह से हम अगर पहले स्थान के बजाय दुसरे पर भी आये तो रह गयी 1% की कमी। हमारे एक क्षण की भी देरी, हमारे 100% को अधूरा कर गया।
हमारी मेहनत शायद हमे जरुर काम आयेगी पर वो जो एक लक्ष्य था जिसे हम केवल एक पल से खो देते हैं उस 1% की कमी हमेशा हमे याद रहेगी। और बाकी लोगो के लिये तो वो 99% भी मायने नही रखने वाला है। अब ये हम पर निर्भर करता है, उस 1% को पुरा करने की कोशिश को हम हमारी अगली कामयाबी की शुरुवात का 1% बनाये या फिर इस 1% की कमी मे इतने खो जायें कि जो हम 99% तक पहुँचे थे वो भी उसके साथ खो दे।
देखा जाए तो, ये 1% हर जगह लागू होता है। हमे काम पर जाना है तो घर से निकलना पहला 1% और ऑफ़िस के अंदर जाना होगा आखरी 1%। घर से तो निकले और ऑफ़िस के पास भी पहुंच गये पर अंदर ही नही जा रहे तो, आखरी एक कदम आपको सफलता से दुर रखता है। कभी कभी तो आखरी एक कदम की कमी आपकी पुरी मेहनत पर पानी फेर देता है।
1% पहला या आखरी अपना महत्व बनाये रखता है इनके बिना कुछ भी पुर्ण नही परफ़ेक्ट नही।
दुनिया मे शायद 1% अच्छे लोग हो वैसे है तो ज्यादा पर इन्ही 1% की वजह से दुनिया को पुरी तरह बुरी होने से बचाए हुए है। वो 1%, बुराई को जीतने नही देते। और कब वो 1% बढ़ कर इतना हो जाये कि हम ये कहने पर मजबुर हो जाए, ये दुनिया बहुत अच्छी है। वैसे दुनिया तो आज भी अच्छी ही है बस हमारा ध्यान बुराई पर ज्यादा जाता है।
अच्छाई मे बुराई और बुराई में अच्छाई यही दुनिया को बचाए हुए है। ठिक वैसे ही हम में भी अच्छाई और बुराई कम ज्यादा मात्रा में है पर है तो।
कभी कभी हमारे जीवन मे सब अच्छा चल रहा होता है फिर भी कुछ कमी लगती है। वो होती है उस 1% की कमी जो सब कुछ होते हुए भी हमें पूर्णता की फीलिंग नही होने देती। यहाँ वो 1 शुरु या अंत वाला नही है वो है 100 में शुन्य के पहले लगा हुआ 1। ये भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना पहला और अंतिम 1, जो 100 को पूर्ण बनाते है। ऐसे में वो 1% हमे ढूंढना चाहिये, हो सकता है वो हमे किसी अपने मे मिले या फिर कुछ और करके जो हम रोजमर्रा में नही कर रहे हो।
ये देखने में तो कोई छोटी सी बात भी हो सकती है :
आप के साथ सब अच्छा हो रहा है, आपका काम, आपके परिवार में, हर तरह से सब सही। फिर भी हो सकता है आपको किसी कमी का एहसास सा लगे जीवन में, जैसे आप समाज सेवा करना पसंद करते या फिर पेंटिंग करना या फिर बाहर घुमना, पर आप अपने काम और बाकी जिम्मेदारियों के चलते समय ही नही निकाल पाते। या फिर कभी ऐसा भी हो सकता है आपको पसंद है काम के बाद हमेशा अपने परिवार के साथ ही वक़्व बितायें पर परिवार में किसी के पास वक़्त ही नही होता सब अपने आप मे व्यस्त होते है।
अगर तो वो एक आपका अपने आप से जुडा है तो आपको कोई दिक्कत नही होगी पर अगर वो किसी और से जुडा है चाहे कितना भी अपना हो जरुरी नही उनके जीवन में भी उसका महत्व उतना ही हो। ये जीवन का वो एक काम हो सकता है जो हर एक के लिये अलग अलग होगा। और कितने ही लोगो को तो ऐसी कोई कमी महसूस होती भी नही। वो भी ठीक है। ये सब करना भी तो है अपनी ही संतुष्टि के लिये। और सफलता दुनिया तय कर सकती है पर संतुष्टि का मापदंड हर एक का अपना अपना होता है।
इसलिये तो कहते भी ना कि किसी मे 1 अच्छाई है और 99 बुराई पर आपके लिये उस एक अच्छाई का महत्व अधिक है तो आपके लिये बाकी 99 बुराईयो का महत्व नही रह जाता ठीक वैसे ही अगर किसी मे 1 बुराई है और 99 अच्छाईयां पर आपके लिये उस बुराईया का महत्व बहुत है तो आपके लिये बाकी 99 का कोई मतलब नही रह जाता है।
तो अगर आपके जीवन मे ऐसे किसी एक की कमी है तो उसे जल्द ही ढूंढ लिजीये ये एक ऐसा एक है जो एक से सौ तक हर एक को सम्पूर्ण बना देगा। वरना शुरू और अंत का एक तो है ही वो तो हर बात में काम आयेगा। और अगर तो आप अपने आप में सम्पूर्णता का एहसास करते है तो देख ले अपने जीवन में वो क्या एक बात है जो ये एहसास करा रही है जिससे बाकी 99, 99 नही बल्कि 00 बन एक के पिछे लगे है और उसे 100 बना दिया याने सम्पूर्ण।
