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Dr. Razzak Shaikh 'Rahi'

Drama

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Dr. Razzak Shaikh 'Rahi'

Drama

ज़रा संभलके रहना

ज़रा संभलके रहना

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अंधेरे का है दौर, जरा संभलके रहना

जाने क्या हो और, जरा संभलके रहना


जो मिल्कियत थी अपनी, उसको भी छीनकर

खा रहे हैं चोर, जरा संभलके रहना


उडाते हैं पतंग उनको, उडाने दो दिनरात

उन्ही के हाथों मे हैं डोर, जरा संभलके रहना


मनमानी चाहे जितनी करे वो, करते रहने दो

हालात पर नही फिलहाल जोर, जरा संभलके रहना


उलझो न किसी साजिश में, खुद को बचाये रक्खो

इस बात पर करो गौर, जरा संभलके रहना


होते नही है हालात, हरदम एकही जैसे

फिर होगी नयी भोर, जरा संभलके रहना


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