ज़रा दोस्ती के सांचे में ढल के देख
ज़रा दोस्ती के सांचे में ढल के देख
तुम भी कभी दोस्ती के ज़रा,
सांचे में ढल कर देख लो।
दो कदम ही सही तुम भी,
मेरे संग चल कर देख लो।।
कहीं मुफलिसी आपको भी,
ना ले ले आगोश में ।
बस एक बार ही सही,
तुम भी सम्भल कर देख लो।।
दर्द क्या होता है तन्हा दिल का,
तुम खुदबाखुद समझ जाओगे।
मेरी तरह तुम भी रात भर,
करवटें बदल कर देख लो।।
इन नाज़ुक से कदमों के नीचे,
कई बार फूलों को कुचला होगा।
कसक क्या होती है दर्द की,
ज़रा कांटों को कुचल कर देख लो।।
तुम भी कभी दोस्ती के ज़रा,
सांचे में ढल कर देख लो।
दो कदम ही सही तुम भी,
मेरे संग चल कर देख लो।।