ज़िंदगी
ज़िंदगी
ज़िंदगी नाराज़ मत हो
अभी तो जीने की वजह बाकी है।
अरमानों की इस डिबिया में
अभी चन्द ख्वाहिशें बाकी हैं।
दुख सुख से छलकते प्यालों को
अभी और पीने की चाह बाकी है।
चाहे कितने भी दौर बदले हो
महफ़िलों के आज भी
तुझ सा कहाँ कोई साकी है।
ज़िंदगी नाराज़ मत हो
अभी तो जीने की वजह बाकी है।।