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ज़िंदगी तेरा गणित

ज़िंदगी तेरा गणित

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चाहा क्या हमने, क्या मिला हमको

कभी ना खत्म हो, ऐसा इंतज़ार मिला हमको

सब खुश रहे बस यही चाह की दिल ने

सबका बेरुखा व्यवहार मिला हमको।


गिरकर सम्भले, गीली आँखों से मुस्कराये

ज़िदी दुनिया ने समझ लिया हमको

कुछ मोती मिले, कुछ आँसू मिले

कुछ अपने गैर हो गए, कुछ गैर हो गए अपने।


चाँद भी मिला तो सूर्य की तपन लिए हुए

शिकवा अपनों से कैसा

जब वक़्त ने सताया हमको

क्या खोया क्या पाया

इसका हिसाब क्या रखूँ।


सवाल मेरे अपने हैं, जवाब भी मुझको देने हैं

ज़िंदगी तेरा गणित क्या रखूँ

फूल का नसीब था खुशबू लुटाना

पूजा में भी चढ़ा और अर्थी पर भी सजा।


सवाल थे अनेक, हल था बस एक

अपूर्ण बने रहना तो विवशता है इंसान की

पूर्णता जो कभी पूरी नहीं होती।


ज़िंदगी तो जीने के लिए है

इसे गणित न बना

जिए जा बस जिए जा।।


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