ज़िन्दगी सिखाती रही
ज़िन्दगी सिखाती रही
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जाने कहाँ गुम था वजूद,
उम्र भर खुद को तलाशती रही !
उड़ रहे थे यादों के वर्क़,
बस सहेजती रही संभालती रही !
आँखे ओढ़ कर पलको की चादर,
सुनहरे ख़्वाब सजाती रही !
सबक ज़िन्दगी का है बहुत निराला,
खुद ज़िन्दगी हमें सिखाती रही !
किया अलविदा किसी मोड़ पर ,
फिर याद उसकी सताती रही !
काश कोई देख ले पलकों के नीचे,
कितनी गहन उदासी रही !
गा रहे थे लब गीत कोई,
ज़िन्दगी धुन कोई और बजाती रही,
सागर में बहती रही लहरें,
मगर उम्र भर प्यासी रही !