भटकाव कम हो रहा है.......
भटकाव कम हो रहा है.......
जब से फाड़ दिए पुरानी डायरी के पन्ने,
बर्फीली यादें अब कम पीछा करती हैं !
टूट सी गई हैं उलझनों की वो डोरियां,
जो बंधी हुई थी बेनामी रिश्तों से !
महंगी थी अतीत की उधार मांगी सांसें,
चुकता हो रही थी दुविधा की किश्तों से !
लगा दिया पलकों पर वर्तमान का पहरा,
क़ैदी आंखे अब कम भीगा करती हैं !
जब से ....
तन्हा वक़्त के धूप सा हर लम्हा,
जा के बैठ जाता था बीते पेड़ की छांव में !
घुमक्कड़ सा बेचारा मन बनजारा,
भटकता रहता था खोई प्रीत के गांव में !
छल से कतर दिए उन ख्वाबों के भी पंख,
अपाहिज कल्पनाएं अब कम उड़ा करती हैं !
जब से......