STORYMIRROR

Neelam Arora

Abstract

4  

Neelam Arora

Abstract

फिर क्यों शिकायत?

फिर क्यों शिकायत?

1 min
115

जब ज़िन्दगी बाँट रही थी ख़ज़ाने

मैं हाथ बांधे खड़ी रही

जब उसने हाथ खींच लिए,

मेरे पसारने से क्या होगा?


देती नहीं सुनाई

अवसरों की खटखटाहट,

दिल के बंद दरवाजों पर!

खुलता नहीं

झरोखा उम्मीद का भी,

इंकलाब की आवाजों पर!

फिर क्यों शिकवा आसमाँ से कि

नही तोड़ता सितारे आँचल में।

फिर क्यों गिला खुशियों से कि 

नहीं नाचती मन के आंगन में!

झुका हुआ था चाँद ज़मीन पर

हाथ बढ़ा कर थामा ही नहीं।

बिखरी थी कलियाँ राहों पर

ठिठका कदम, उठा ही नहीं।

मैं अटकी रही दहलीजों पर

कारवां धूल उड़ाता निकल गया।

सच का सौदागर ले गया सपने 

आंखों में आंसू की नगदी छोड़ गया!

      


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract