ज़िन्दगी एक अनसुलझी पहेली
ज़िन्दगी एक अनसुलझी पहेली
आह भरती हुई ज़िंदगियाँ,
ना रुकती है, ना थमती है, सिमटती हैं,
बस कुछ यूँ गुमां होता है सदियों से,
चलते रहते है ये सिलसिले जिन्दगी के,
खेल कैसा है, क्या है, कोई नहीं जानता,
बहता रहता है, बस बहता रहता है,
सफर है आहों का बस, यूँ ही,
चलता रहता है, चलता रहता है,
वैसे तो ऐ जिंदगी तुझ में फरेब है,
वेवफाई है, उदासी है, रूसवाई है,
पर हमने हर बार मुस्कुरा कर,
जिदंगी तेरी हर बार आबरू बचाई है,
ज़िन्दगी बहुत कीमती है,दोस्तो,
इसे उदासी में गंवाने से क्या फायदा,
ग़म आते जाते, चलते राही है,
उनको दिल लगाने से क्या फायदा,
कड़वा है, फीका है, शिकवा क्या कीजिए,
जीवन समझौता है, घूँट-घूँट पीजिए।।
