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Sunil Maheshwari

Abstract Inspirational Others

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Sunil Maheshwari

Abstract Inspirational Others

यूं ही नही हिंदी कहलाती हूं

यूं ही नही हिंदी कहलाती हूं

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यूं ही नहीं में हिंदी कहलाती हूं,

मातृभाषियों की जुबां बन जाती हूं,

मेरा श्रृंगार है ही ऐसा निराला,

जहां शब्दों को पिरोती हूं

छन्दों की माला बना देती हूं।

जहां काव्य के स्वरूप को बनाती हूं नया,

दिव्यता, ज्ञान को बनाती हूं अद्भुत माया,

है अस्तित्व मेरा संकट में पड़ा अब भारी,

मुझे बचाओ आज के युवाओं मेरे,

में भी हूं मां के रूप में एक नारी,

मेरी रक्षा का उत्कर्ष दिखाया था विवेकानंद ने,

विदेश जाकर भी हिंदी को दिलाया था

मातृभाषा कहलाने का आनंद भी,

कितने वीर कवियों ने प्रशंसा की अपने शब्दों में,

आज आधुनिकता के बढ़ते प्रपंच ने,

छीन लिया है मेरा असल अभिरूप मुझसे,

में पुकारूं मां तुम्हारी रहने दो मुझे

मेरे अपने असली अस्तित्व में।



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