ज़िंदगी बोझ क्यों लगती है
ज़िंदगी बोझ क्यों लगती है
जिंदगी अब बोझ सी लगने लगी हैं क्यो...
जिंदा हूँ फिर भी जिंदगानी की कमी हैं क्यों...
हाँ सब कुछ तो दिया है तूने खुश रहने को...
खुश रह कर भी खुशनसीबी की कमी क्यों है...
वैसे तो मुस्कुराना मेरी फितरत में हैं...
मगर ये खुदा उसमे मुस्कुराहट की कमी क्यों है...
हाँ माना कि भूल तो बहुत की हैं मैने...
माफ़ी भी मांगी सबसे, पर ए खुदा....
सजा उसकी पूरी जिंदगी क्यों है....
ना चाहते बहुतो को दुख दिया मैंने...
अंजाम ए खुदा शायद सजा पाया भी मैंने...
सजा से तो डर नही लगता मुझे...
पर सहने की हिम्मत बाकी नही अब...
रहम ए खुदा....
जगह दे के अपने पास मुझे...
रहम करता क्यों नहीं....