ज़ब भी कलम उठाते हैं..
ज़ब भी कलम उठाते हैं..
साथ में बिताये अपने सुनहरे ख़्यालात लिख देते हैं...
मोहब्बत में बिखरे हर जज़्बात लिख देते हैं...
मशगूल होके उसकी यादों में दिन को रात लिख देते हैं...
मिलन की चाहत में कल को आज लिख देते हैं औऱ...
ज़ब भी क़लम उठाते हैं,उसका नाम लिख देते हैं!
लिख देते हैं ना जाने क्या-क्या...
कुछ ख़्याल नहीं रहता...
मोहब्बत में अक्सर ऐसा हाल नहीं रहता...
पूछते हैं लोग हमसे...
दिल कि खामोशियों की आवाज़...
हम भी कह देते हैं कि हमको कुछ भी याद नहीं रहता...
कभी मीरा को मीरा तो कभी मीरा को श्याम लिख देते हैं...
ज़ब भी क़लम उठाते हैं,उसका नाम लिख देते हैं!