यह मन
यह मन
कभी सागर की लहरों सा
उद्वेलित आवेशित
कभी शांत नदी की धारा सा
सुगम अबाधित
कभी भीड़ में होकर भी
रहता तन्हा सा
कभी एकांत में भी रहे
परितृप्त भरा सा
कभी ख्वाबों में ही
बसा रहे भ्रमित सा
खोया खोया यह मन
सुप्त उन्मीलित सा
कभी मोह जाल
से चुम्बित सम्मोहित
कभी सन्यासी का सा
मन विरक्त विरागित
कभी बीते कल की
यादों से विचलित
कभी आते कल की
आशा में प्रतीक्षित
कभी तूफानी आवेग
सा अशांत अव्यवस्थित
कभी शीतल मंद
बयार सा सुरभित
मन के वश में रहेंगे जब तक
अशांत ही रहेगा मन
मन को वश में कर लेंगे जब
शांत सहज हो जाएगा जीवन