ये तो ऋतुराज बसंत है
ये तो ऋतुराज बसंत है
बसंतागमन से जीवन में ताल, लय व छन्द है,
जैसे कोई पुष्प में छुपा हुआ भौंरा मकरंद है !
धीमे से जिसके आने की मृदु आहट आई है,
यह और कोई नहीं , ये तो ऋतुराज बसंत है !
सुरभि जैसे पवन संग कर रही कोई द्वंद्व है,
आज पल्ल्वित कलियाँ जैसे प्रकोष्ठ में बंद है !
धीमे से जिसके आने की मृदु आहट आई है,
यह और कोई नहीं , ये तो ऋतुराज बसंत है !
ताल लय छन्द में देखो कैसे बंद मकरंद है,
लगता है, सुरभि पवन संग कर रही द्वंद्व है !
धीमे से जिसके आने की मृदु आहट आई है,
यह और कोई नहीं , ये तो ऋतुराज बसंत है !
पल्लावित शाख शाख पर फूट रहा जीवन,
भर रहा मन में उन्माद,उमंग और आनंद है !
धीमे से जिसके आने की मृदु आहट आई है,
यह और कोई नहीं , ये तो ऋतुराज बसंत है !
धीमे से जिसके आने की मृदु आहट आई है,
यह और कोई नहीं , ये तो ऋतुराज बसंत है !
कोकिल के कण्ठ में जैसे सुर नया सज रहा,
शनै : शनै: मलय की गति भी हो गयी मन्द है !
धीमे से जिसके आने की मृदु आहट आई है,
यह और कोई नहीं , ये तो ऋतुराज बसंत है !