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Geeta Upadhyay

Tragedy

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Geeta Upadhyay

Tragedy

ये सियासत की खूबी है

ये सियासत की खूबी है

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ये कोई युद्ध का मोर्चा नहीं,

न ही कोई खून का प्यासा है

सब की सांसें वोटों पे टिकी हैं।


नींद और चैन गायब है

एक दूसरे की टांग खींचने,

में हर कोई माहिर है।


वादों के तकिये बन गये हैं

विकास की चादरे तन गई हैं

खिचड़ी बनने से पहले ही,

जल गई है क्योंकि,

मौसम और

राजनितिक गलियारों,

में गर्मी बड़ गई है।


चुनावी दंगल में सभी,

योद्धा हुंकार भर रहे हैं।

जीतने की कोशिस में एक दूसरे,

पर कीचड़ उछाल रहे हैं।


जनाब अलग ही ताने सुना रहे हैं

ई-वी-एम पर भी संदेह जता रहे हैं।

श्रेष्ट से भी श्रेष्ट ऑफर देकर,

वोटरों को अपनी और बुलाने लगे हैं।


मर्यादाओँ की सीमा लांघकर,

चौकीदार को भी चोर बताने लगे हैं।

नीचा दिखाने का कोई भी

मौका नहीं गवांते।


बेपेंदी के गड़े मुर्दे

उखाड़ कर हैं लाते।

दल बदलू चंद कोड़ियो के,

भाव बिक रहा है।


अगले चरणों के चुनावों का,

जोर- शोर  दिख रहा है।

कहीं पुराने चेहरों पर,

दांव लगाए जा रहे हैं।


तो कहीं नये अपना,

जलवा दिखा रहे हैं।

किस्मत बदलते देर नहीं लगती,

कभी नैय्या पार तो कभी डूबी है

हार कर भी हार ना मानना।


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