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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics Inspirational

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics Inspirational

ये शिरोमणि सिंहासन है

ये शिरोमणि सिंहासन है

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यह वीरों का आसन है

न किसी का इस पर स्वशासन है

रहा बहुबल नित पद्मासन है

यह शिरोमणि सिंहासन है। 


यह विशिष्ट महाराजों से

संग्रहित हैं राज दरबारों से

इनके चरण-रज पोंछे जाते

नृपों के शीश मुकुटों से। 


जिसकी रक्षा के लिये हुई

समर्पित कई बलिदानी है

राणा तू कर रक्षा इसकी

यह शिरोमणि सिंहासन है। 


खनकती उन तलवारों की

कौतुक होती थी कटारों से

सारंगों की धारों से देखते ही

छिन्न-भिन्न हो जाते अंगों से।


हल्दीघाटी के अरावली पथ पर

सनी माटी वीर मेवाड़ी सानों से

जननी जन्मभूमि का अर्चन करते

जीवन के उत्थान फुलझड़ियों से। 


न जाने कितनी बार चढ़ी घाटी में

भीषण भैरवी जवानी पर

कण-कण के उर में बसा राणा तू

कर रक्षा यह शिरोमणि सिंहासन है।


भीलों ने अभी रण-हुंकार भरी है 

हाथों में कटे खड्ग औ शीश लिए

उर-झंझाओं में ललकार भरी है 

भोले-भाले भील लड़ने की तैयारी में। 


गिरिराज के ऊँचे शिखरों पर

विटपों के फूल-पत्ते अन्न बने

रक्षक शिखर-शैल बने थे

राणा के तुंग आस्थान-मंडल बने। 


तुलजा भवानी की सौगंध ले

शीश पग कफ़न बाँध चले

रण-बाँकुरे मैदान चले 

करने को बलिदान चले। 


खमनोर के दर्रों में

रक्ततलाई में बहते रक्तों ने

पुकार लगाई धरती ने रक्षा कर राणा तू 

ये शिरोमणि सिंहासन है।  


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