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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Romance

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Romance

मोहनी

मोहनी

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क्षम्य हो मेरा अपराध

देख तुम्हारी अँखियों का सार

मन को मोहने वाली हिरणी

मोहित तो है तुमसे सारा संसार।


हार गया मैं तुमसे 

सुनकर बातें बेगानी थारी

शब्दों के बाण चला-चला कर तुमने

घायल कर दिया इस मन हारी। 


दूर तक जहाँ नहीं कोई

जीवन के इस निर्जन पानी 

कहां से आकर तुमने

छेड़ी ये राग अनजानी। 


शान्त शिखण्डी का मैं मारा

ये नयन रण मेरे लिये असमान

अकेला लड़ा इस आशय से

जीत सकूँ मैं सारा जीवन विहान। 


अगर पराजित हुआ तुमसे मैं

तो जीत लूँगा सारा आसमान

मैं तुमसे जो कर रहा तर्क-वितर्क 

इसमें है मेरी वाणी का समाधान।


तुम ही थी हृदय की पीड़ा

अंतस् की गुंजन थी तुम बाला

पढ़ा होगा मेरी आँखों में तुम

एकाकी जीवन की मेरी हाला। 


अपनी कृति देकर इन अँखियों को

खो न जाना इस निदारुण वन में। 



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