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Anju Singh

Tragedy

4  

Anju Singh

Tragedy

ये फुटपाथ की जिंदगी

ये फुटपाथ की जिंदगी

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जिसके नसीब में छत नहीं होता

उसका बसेरा तों फुटपाथ है होता 

कहते इसे सड़क का किनारा

पर होता बेसहारों का सहारा


तपती दोपहरी हो या

ठिठुरन भरी जाड़े की रात

जाने कितने लोग जिंदगी 

गुजारते हैं फुटपाथ के साथ


हर रोज मौत है नाचती

फुटपाथ की जिंदगी में

खुशकिस्मत होते हैं वो लोग

जो चैन से रहते घरों में


कितनों को नींद नहीं आती 

मखमल के बिस्तर पर

ग़रीब थक कर सो जाते हैं

फुटपाथ के बिस्तर पर


कुछ असहाय बेबस है 

और कुछ की है लाचारी

इनकी मजबूरी को 

क्या जानें दुनिया सारी


तन पर पूरे वस्त्र नहीं

सर पर कोई छत नहीं

मौसम कितने आते जाते 

इनको कोई फिक्र नहीं


राह देखती कातर ऑंखें

कोई कृपा निधान नहीं

सोचों जरा सहानुभूति से

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फुटपाथ के सिवा उनका कोई नहीं


कितने ही असहाय 

जिंदगानियों का है ये बसेरा

तंगहाली से हो तर-बतर

यहाॅं डालते जीवन का डेरा


मजबूर बेबस लोगों का

यहीं दो वक्त का खाना है

हॅंसकर जिंदगी गुजारना और

फुटपाथ इनका आशियाना है


ना जाने कितनी जिंदगी 

जान गँवा जातीं है

और बेबस गरीबी

पूरी यहीं गुजर जाती है


ना जाने कितने ही यहाॅं

जिंदगी बसर करते हैं

तड़पकर यहां जीते 

और तड़पकर मरते हैं


एक तरफ तो देश 

अग्रसर है प्रगति की राहों में

पर फुटपाथ के बेबस लोग

कहाॅं आते सबकी निगाहों में


हम अक्सर देखा करतें हैं

जूते सज रहें शोरूमों में 

और किताबें दिखती फुटपाथों पर

क्या किताबों का मोल नहीं

जीवन में यूं लगता है

जिंदगी का शायद‌ मोल नहीं


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