ये लोग
ये लोग
तुम कहते हो तुम मेरे हो, पर शर्त तुम्हारी चलती है
मेरे इस कोमल ह्रदय से, अश्रु की धरा झरती है।
बाहर तो गैरों की टोली,अपनों को भी प्रमाण दिया
जो चुप्पी साधे बैठे थे, अब वाणी वज्र प्रहार किया।
जितना तुम मुझको दुःख देते, बल मेरा उतना बढ़ता है
मानस में जितना प्रेम भरा, वह इक इक करके छंटता है।
दिन रैन गलत करके तुम सब, अब उजरे बनते फिरते हो
स्नेह भरे कोमल मन में, अनगिनत घाव भर देते हो।
