आज और कल
आज और कल
हमने देखे हैं खुले गगन देखी उजियारी चाँदनी ,
बहुत दूर झिलमिलाती लगती फिर भी अपनी सी|
मंद हवा के झोंकों में नीत नवीन डरे झूले,
क्या खोया है क्या पाएंगे झूले के झोंकों में भूले|
बरखा की बूंदों में छप छप पैरों को खूब भिगोया था,
कागज की नाव बनाकर के बचपन को खूब घुमाया था|
मित्रों की सभा के राजा थे सबके मन पर करते थे राज,
मित्र हमारे भोले थे कुटिल नहीं हैं जैसे आज|
निद्रा चुपके से आकर के अपने आंचल में लेती घेर,
बेसुध निश्चल भोला बचपन सपनों में फिर करता प्रवेश|
कंधे रहते भार मुक्त नित सीख नवीन मिल जाती थी,
आदर अनुशासन प्रेम दया की पग पग सरिता लहराती थी|
चलो अभी समय की बात करें अपनों की परिभाषा बदल गई,
आदर् सम्मान दया प्रेम की भागीरथी भी सूख गई|
बच्चों का वह भोलापन चतुराई में बदल गया,
सब रिश्तो का अपनापन गया व्यापार में सब कुछ बदल गया|
जो भावुक और संवेदनशील उनको कमजोर की संज्ञा दी,
जिसने इस सृष्टि की रचना की वह भी स्तब्ध सा खड़ा वही