STORYMIRROR

Arti pandey Gyan Pragya

Abstract

4  

Arti pandey Gyan Pragya

Abstract

कोरोना

कोरोना

1 min
451

देखो यारो हर व्यक्ति बेहाल है,

धरती की गति रुक सी गई है

चारो तरफ हाहाकार है।


अदृश्य से जीव ने सबको वश में किया है,

दृश्य इतना भयानक कोरोना ने ये क्या किया है।


तेरे बनाये खिलौने ने तुझ पर वार किया

और क्या क्या जितेगा,

आकाक्षा तेरी पुरी होगी नही

पृथ्वी गोल है पायेगा अपने को यही।


हर व्यक्ति घर में रुकने को मजबूर है,

सूरज का प्रकाश चन्द्रमा का उजाला

सच में बहुत दूर है

आज सूबह हरी भरी नही लगती

सारा जहां निंद में है अभी


याद करो उस घटना को,

केदार में मची तबाही थी|

एक जटा जब खुली रुद्र की,

चहु दिशि विपदा आयी थी।


माँ ने तुमको जन्म दिया तब,

मुटठी खोले आये थे।

दूध के इक इक बूँद का ऋण,

क्या तुम एसे चुकाओगे।

मानव विहिन पृथ्वी करके,

फीर तुम कैसे रह पाओगे।


प्रकृति के् विरुद्ध मत जाओ ,

तुम अवश्य पछताओगे|

इक इशारा धरा कर दे,

तुम मिट्टी में मिल जाओगे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract