ये इश्क की अदा होती अजीब है
ये इश्क की अदा होती अजीब है
खामोशियों के इस पल में
एहसास थम थम से गए हैं
आंखों में सोते जागते ख्वाब सज रहे हैं
बसंती हवाओं ने की शरारते हैं
ऐसी मौसम करवट बदल बदल फिजा में
नशा घोल रही है यह इश्क की अदा भी होती
कुछ अजीब है जज्बात लबों पर आ आकर
आंखों से बयां हो जाती है
इश्क और मौसम का मिला जुला शुरूर है
पलकें झुकी झुकी रूह बोल रही है।

