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अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"

Romance

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अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"

Romance

ये दो लब मेरे हिले ही नहीं

ये दो लब मेरे हिले ही नहीं

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खामोशियों का सबब ढूंढ़ते,

ये दो लब मेरे हिले ही नहीं.....

मन में उठता रहा शैलाब सा।

बुलबुलों की तरह था ख्वाब सा।


कहने को था बहुत कुछ मगर,

वो मौके यहां पर मिले ही नहीं....

कांधों का बोझा जैसे बढ़ा।

कोल्हू में जैसे होता खड़ा।


मन में समेटे लाखों जतन,

गिले थे जो अब गिले ही नहीं...

सुब्ह से शाम तक यही काम है।

सिर्फ एक खालीपन अंजाम है।


दौड़ में आगे रहने की खातिर यहां

सुकूं के होते सिलसिले ही नहीं....

हारना जीतना खेल चलता रहा।

सांसों का दीपक है जलता रहा।


बेफिक्र होकर बंद पलकें किये,

सफर के वो काफिले ही नहीं।


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