बरगद जैसी छांव
बरगद जैसी छांव
बच्चों को हर दम मिली, बरगद जैसी छाँव।
पिता उपस्थित अगर हैं, खेते रहते नाँव॥
पिता के यश से है बढ़ा, बच्चों का सम्मान।
पिता लगा लेता सदा, खतरे का अनुमान।।
मुखिया बन लेता रहा, जीवन की हर साँस।
सब सदस्य मिलकर रहें, उसका है विश्वास॥
मैंने देखा है यहाँ, कम ही मिलता मान।
बैरी सब हैं मानते, करते हैं अपमान॥
पटरी खाती बहुत कम, रहते हैं सब दूर।
उनके अनुशासन से रहे, घर में फैला नूर।
पिता अगर हैं टोकते, बुरा मानते लोग।
जो अनुभव में खरे हैं, दूर करें सब रोग।
गर बच्चे लिख पढ़ गए, चले गये विदेश।
वृद्धाश्रम पहुँचा उन्हें, करते बेशर्मी पेश।
पीड़ित मन की हाय ले, पिता रहे मजबूर।
जिगर के टुकड़ा जब करे, खुद से उनको दूर।
मात पिता हैं देव तुल्य, जीवन का वरदान।
मान अगर ना दे सको, नहीं करो अपमान॥
सोलह इंची दीवार हैं, चट्टानों जैसा रूप।
सुरक्षित वो सबको रखें, ठंडी गर्मी धूप।