गर्मी के दोहे
गर्मी के दोहे
सूरज को गरमी चढ़ी, बढ़ता जाए ताप।
पानी देखो उड़ रहा, बन करके अब भाप।
धरती तपी बुखार में, नहीं चिकित्सक पास।
कट चुके जंगल यहां, हो गया सत्यानाश।।
धूप दिखी चहुं ओर अब, खोज रहे सब छांव।
एक दांव मानुष चला, प्रकृति चली है दांव।।
बारिश की है लालसा, तपन करें जो शांत।
तापमान को कम करे, बैरी जो आक्रांत।।
अभी मई का घाम है, बचा जून का ताप।
पारा बैठा हार कर, कौन करेगा नाप।।