ये दिल तो ,आतुर है
ये दिल तो ,आतुर है
गर निर्मोही पखेरू बन प्रिय उड़ जाओगे,
तो हम तुम बिन अकेले कैसे रह पाऊँगी।
प्रेमपाश में बांध हमें, जब यूँ चले जाओगे,
विरहानल के लपटों से कैसे बच पाऊँगी।
इन साँसों के रुदन को गर समझ जाओगे,
तो वे तन्हाई के रातें तुमको भी तड़पायेगी।।1।।
गला रुंध गया है, तुम्हारे कन्धों के सहारे में,
तुम बेबस हो, पर जुदाई कैसे मैं सह पाऊँगी।
ये दिल आतुर है तुम्हारी साँसों संग घुलने में,
यूँ संयोग की हर छाया में तुममें बस जाऊँगी।
जग छोड़ आई हूँ तुम्हारे ढिग, गर अहसास है,
आओ भी जब, उन रागों के गीत बन जाऊंगी।।2।।

