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Om Prakash Gupta

Romance

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Om Prakash Gupta

Romance

मैं ही नहीं,तू भी

मैं ही नहीं,तू भी

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मैं तन्हा ही जागा नहीं प्यार में,

तू भी रातों न सोयी, होगी जरूर।

मैं करवटें बदलता रहा हर रात को,

तेरे बाहों की चूडियाँ खनकी जरूर।


नायाब है तू हमने, यह माना मगर,

दिल दिया है कोई दिल्लगी नहीं की।

हो भरोसा न मुझ पे ,तो जा पूछ ले,

कोई न तेरे मन की मीत, होगी जरूर।


जब भी आयी होगी तुझे याद मेरी,

तेरी तन्हाई तो दमकी होगी जरूर।

पर ये बताओ हमारे प्यार के बंधन,

की बात लोगों में फैली होगी जरूर।


आह तक न की, जाने क्या बात हुई,

कोई मजबूरी तुम्हारी तो होगी जरूर।

उन सुबकती ऑखों की भरी बज्म से,

इस दिल की दशा देखी, होगी जरूर।


आज अरसों से मिलने आई मुझसे,

ये वक्त आया है, करते शिकवे गिले,

अब कितने तूफान रहे हमारे चाह में,

वादा है, कभी यूँ जुदा न होंगे जरूर।


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