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Om Prakash Gupta

Others

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Om Prakash Gupta

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ऊंचे हरे पेड़ बौने बने हैं

ऊंचे हरे पेड़ बौने बने हैं

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 पत्थरों के जंगल, हो रहे जीवन्त 

 जीवन्त जंगलों का हो रहा अन्त,

 चारों ओर, लोगों में मची गदर है,

 विकास रफ्तार बढ़ी इस कदर है।।

 

          विवेकहीन नहीं तो अज्ञानता कहूं,

          अब तो विवेक की ही न कदर है,

          कदर है बस केवल उस शून्य की,

          जिसमें वह खुद ही लदर पदर है।।

           

 छत पर कर रहीं ,यूं अठखेलियां,

 बेजुबां नक्काशी उन पे बनी हुईं,

बद में सनी है, पर चलन में वही है,

उसी की कदर ,जो हद से बदर है।।


           अब वे पत्थर ही बड़बोले बने है,

          हमको छू तो लो, ये कहने लगे हैं,

          हरे पेड़ हो क्युं अब बौने लग रहे,

          मैं ही हूं, जो चकमक में चमक रहे ।।

 

 

 

 

 

 



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