वही किया,जिसमें अन्तर्मन लुटा
वही किया,जिसमें अन्तर्मन लुटा
उस पेड़ की आत्मा महसूस किया है
मैंने,तूने कहा जो बातों के इशारों से।
वैसे ही,जैसे नदी ने महफूज किया है,
बस दे झोंका,आई वो गांव के छोर से।
मुझे बेध, उसने अन्तर्मन लूट लिया है
वो आई, घर के अवघट पिछवारों से।1।
जी भर न देखा,न नादानी बिसराया है,
दर्द भी न मिला,अवशेष बने दीवारों से।
उन छिद्रों से लोगों ने खड्ग लहराया है
पूछो तो,प्राचीर में लटके सब जालों से।
पुरखौती ने वेवजह वो बीज लुटाया है,
ले जाकर अलंकारा है पाहन प्रसादों से।2।
