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Om Prakash Gupta

Others

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Om Prakash Gupta

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हो सके, तो लौट आओ न

हो सके, तो लौट आओ न

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हमारे गाँव के ओर जाती हुई पगडंडियाँ,

क्यों तू तब्दील हुई अब पक्की सड़कों में । 

खेतों में चलने वाले वो हमारे बैलों के हल,

चोला छोड़ बदल गये पावर टीलर यंत्रों में ।

ईंटों के ये घर, फिर मिट्टी के बन जाओ न,

सुकून के वो लम्हे! हो सके लौट आओ न ।।1।।


     खोई सोंधी दीवारें, स्कूलों के चौबारों में ,

     सन्नाटा फैला दरख्त में बैठी बुलबुलों में,

     गुरुओं के वो ओज, समाते थे शिष्यों में,

     सलोने सपने बुनते, पुरखों के किस्सों में,

     आ गये टी वी में, अब बहारों में छाओ न,

     मेरी अल्हड़ता ! बन सके लौट आओ न।।2।।

     

खोये सोहर ललना के, बदले वे बर्थ डे में,

विवाह के लोकगीत खोये यूँ रिसेप्शन में,

नूपुर की रुनझुन खोई बाबू के अंगना में,

झूले संग कजली चुप, हाथों के कंगना में,

सब गुमसुम है, छम छमकर किलकारों न,

छिप गये जहाँ, हो सके तो लौट आओ न।।3।।



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