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puja babaria

Abstract

3.9  

puja babaria

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ये दिल नासमझ बहुत है

ये दिल नासमझ बहुत है

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हर वक़्त बेज़ार फिरता है

ये दिल नासमझ बहुत है

अंधेरों मे कैद है

उजालों मे ख़ामोश है


ये दिल नासमझ बहुत है

संभल के चलता फिरता है

उलझानों में हँसता ज्यादा है

ये दिल नासमझ बहुत है

कागज की नाँव मे तकदीर छिपाता है

रूठें सपनो को नदी मे तैराता है

ये दिल नासमझ बहुत है

बाते बनाने में फुर्सत नहीं है

जूठी तस्वीरों में चाहत नहीं है

ये दिल नासमझ बहुत है

लफ्ज़ आँखों से पढ़ता है

जबान की जरुरत नहीं है

ये दिल नासमझ बहुत है। 


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