ये बेवक्त की बारिशें।।
ये बेवक्त की बारिशें।।
बहा ले जाती हैं साथ न जाने
कितनी ही ये ख्वाहिशें
दुश्मन सी लगती हैं मुझे
ये बेवक्त की बारिशें
राह तकती आंखों को
आंखें दिखाकर निकल जाता
आसमान में छाया हर बादल
फिर बिन बुलाया मेहमान
क्योंकर बन जाती हैं
ये बेवक्त की बारिशें...
हाड़ तोड़ती मेहनत से
लहलहाकर हरियाली खेतों में
जब किसान सोना उगाता है
तो काल बनकर फसल पर
क्योंकर मंडरा जाती हैं
ये बेवक्त की बारिशें....
कुदरत तो कैकयी सी
कभी समझ ही नहीं पाती
उसके हित में किसान का योगदान
उसीके खिलाफ कुदरत के कान भरती
मंथरा सी नजर आती हैं मुझे
ये बेवक्त की बारिशें....
सुनती ही नहीं हैं जो
उस गरीब की भी गुजारिशें
बेरहम सी लगती हैं मुझे
ये बेवक्त की बारिशें....