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Indraj Aamath

Classics Fantasy Inspirational

4  

Indraj Aamath

Classics Fantasy Inspirational

यदि ये यादें ना होती

यदि ये यादें ना होती

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कितना अच्छा होता 

यदि ये यादें ना होती ,

मैं कभी टूटा ना होता

कभी बिखरा ना होता


तपती दोपहर में मैं 

कभी नंगे पैर चला,

शीत लहर निशा में

अधबदन मैं सोया


उदर कभी भरा नही

प्यास कभी बुझी नही,

बिना शाखों के पेड़ में

ये हवा कभी ठहरी नही


नूतन हाथों ने जीने को

बोझा उठाना शुरू किया

मिट गई हाथों की लकीरें

भाग्य इनसे भी जुड़ा नही


कुछ कर गुजरने की

ठान रखी थी मैंने

मंजिल की फिक्र नहीं

होंसलों से लगा रहा


कितना अच्छा होता

यदि ये यादें ना होती,

ऑफिस की खिड़की से

एक वक्त गुजरते देखा।


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