यादें कुछ बिखरी सी।
यादें कुछ बिखरी सी।
कुछ पन्ने बिखरे थे यादों के इधर उधर
चार दीवारें और कुछ पलंग,
याद दिलाता था वो कल और वो मंज़र।
कहने को तो वो एक ठिकाना था बेसहारों कापर तार दिल से जुड़े थे।
जो पूछे दिल का हाल और मरहम दे हर तकलीफ में,
वो ही सच्चे रिश्ते थे, बाकी सब तसल्ली और दिखावे के लिए अच्छे थे।
आज देखा वो कमरा तो फिर से सब कुछ याद आ गया।
सब जाने कहाँ चले गए थे, अब न वहाँ न अपने थे,
न अपनों के साए थे।जो पूछे दिल का हाल और मरहम दे हर तकलीफ में,
वो ही सच्चे रिश्ते थे, बाकी सब तसल्ली और दिखावे के लिए अच्छे थे।