याद
याद
कुछ इस तरह वो हमें अक्सर तड़पाते है
ज्यों थार में बिन मौसम बादल छाते है
लगते है सर्द बयार से वो यूँ मुझको
भरूँ आंहे वो दिल को जुकाम दे जाते है।
रेत के शुष्क टीले सी लगती मुझे वो
मौसम की सहनशीलता से भरी है वो
उसकी वाणी का आकर्षण जादू सा है
दिल से लगती इक वाटिका हरी है वो
कभी प्यार मुझे वो बहुत सताती है
मौसम की घटा सी वो छा जाती है
ग्रीष्म की शीतल समीर सी है वो
छूकर बदन को वो सुकून दे जाती है।
वो इस उपवन की है अनुपम छटा
लगती ऐसी छाई ज्यों घनघोर घटा
इस तपन को बारिश बन मिटाती है
पर दूर रहकर मुझे बहुत तड़पाती है।
पेजन की झंकार ऐसे मन मोह लेती है
ज्यों कोकिल बसन्त को महान बनाती है
बारिश की पहली फुंहार सी लगती है
चित में आकर कुमुस सी महक जाती है
वो आती चंचल तितली सी ख्वाबो में मेरे
मैं नादान भृमर सा उसके लिए गुंजार करूं
नवांकुर पराग सम मुझे हरपल लुभाती है
मैं ख्वाबो में कोमल कली का रसपान करूं।
कुछ यूं आई मेरे जीवन की बनकर इक डोर
हृदय में सुकून है नाचता मैं बनकर इक मोर
थाम ले आकर हाथ तू बन मेरी सहजादी
चले संग दोनो उस डगर जिसका ना हो छोर।