व्यथित किसान रोते होंगे🌷
व्यथित किसान रोते होंगे🌷
दाना अन्न पानी से
जीवन सबका चलता है
इसके बिन कोई नहीं जो
जीवित यहां रह सकता है।
फिर भी इसको उगाने वाले
इसी से वंचित रह जाता है
सरकार के आगे हाथ पसार
अपना दुखड़ा सुनाता है।
पर ध्यान नहीं किसी का
इसके ऊपर जाता है
वंचित हमेशा अपने हक से
यह रह जाता है।।
सब का बोझ उठा कर यह
अपने सर ले लेता है
तनिक भी नहीं किसी को
इसका चिंता होता है।
बेखोफ इसकी बदहाली देखो
कभी चैन से ना सो पता है
फटे पुराने वस्त्र पहनकर
सारा दिन बिताता है।
अपनी व्यथित करूना को
नहीं सुनाने किसी को जाता है
जितना इनसे सक्षम हो
उतना ही पा कर रह जाता है।
इतनी आसानी से हम उसको
गरीब किसान कह देते हैं
कभी नहीं उसकी मेहनत को
झांक कर देखने को जाते हैं।
कितना वह जीवन में
कष्ट सहन कर जीते हैं
मर्यादा नहीं कभी हम
उनके अन्न को देते हैं।
सोचो वह व्यथित होकर
कितना रोते होंगे
जब कहीं अन्न के दाने
बिखरे देखते होंगे।